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एस धम्मो सनंतनो
जिंदगी अधूरी है। दर्द भी जरूरी है। कभी बढ़े कभी घटे अनबुझे फासले बदनामी ढोते रहे मंजिल के काफिले अनदेखे सपनों की छाया सिंदूरी है।
दर्द भी जरूरी है। दर्द का भी बड़ा उपयोग है। और वह उपयोग है कि तुम उसे देखो, पहचानो, विश्लेषण करो, खोदो, समझो। उसी समझ से तुम्हारे भीतर सुख का अवतरण होता है। सुख को खोजने मत जाओ, दुख में उतरो। और जब मैं कह रहा हूं कि दुख में उतरो, तो मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम अपने लिए दुख पैदा करो। दुख वैसे ही काफी है। कुछ और पैदा करने की जरूरत नहीं है। ___ कुछ मूढ़ ऐसे हैं कि वे समझ गए कि दुख में उतरने का मतलब है कि और दुख पैदा करो। भोजन भी है, तो उपवास करो। इसकी कोई जरूरत नहीं है। दुख वैसे ही काफी हैं। __तपश्चर्या का यही अर्थ है कि जब दुख हो, तो उसमें जागो। लेकिन लोग मूढ़ हैं। उन्होंने उलटा अर्थ ले लिया। उन्होंने अर्थ ले लिया कि अपने लिए दुख पैदा करो। पहले सुख पैदा करने की कोशिश करते थे, अब वे दुख पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। पहले सोचते थे कि किसी तरह कमरे में एअर कंडीशनर लग जाए। अब? अब उन्होंने धूनी रमा ली। अब वे आग जलाकर उसके पास बैठे मर रहे हैं! मगर मूढ़ता पुरानी की पुरानी है। __पहले सोचते थे, सुंदर वस्त्र; अब नंग-धडंग बैठे हैं! पहले सोचते थे कि अच्छा बिस्तर, अच्छा सोने का स्थान; अब इतने से काम नहीं चल रहा कि वे साधारण बिस्तर पर सो जाएं। जो है उस पर सो जाएं। अब उन्होंने कांटों को बिस्तर बना लिया है! अब खीले लगाकर उन्होंने अपनी विशेष शय्या बना ली है! यह मूढ़ता है! यह एक अति से दूसरी अति पर जाना है।
और ध्यान रखनाः भोगी की मूढ़ताएं हैं, योगी की मूढ़ताएं हैं। और दोनों से जो जागता है, वही ज्ञानी है।
नहीं तो योगी की मूढ़ता पकड़ लेती है! भोगी की मूढ़ता से छुटे किसी तरह, तो योगी की मूढ़ता पकड़ लेती है! इधर भोगी है कि एक-एक बात सुख ही सुख मिले, इसी कोशिश में करता है। और उधर योगी है कि हर चीज से दुख मिले, इसकी कोशिश में रहता है। अगर रास्ता साफ-सुथरा है, उस पर वह न चलेगा। जहां कांटे
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