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जीवन चरित्रकी आवश्यकता।
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(९) ब्रह्मचर्य-मानवकी शक्तिको दृढ़ और मनको पवित्र रखनेके लिये मानव जातिके लिये यह एक अति आवश्यक गुण है। जो विवाहित नहीं हैं वे अपने वीर्यकी रक्षा पूर्णपने करके श्री महावीरस्वामीके समान परम वीर बननेका यत्न करते हैं। पर जो विवाहित हैं वे केवल संतानकी इच्छासे गृहसंसारमें वर्तते हैं तो भी इच्छाको आधीन रखते हैं। जो इस गुणकी कदर नहीं करते वे वीर्यको वरवादकर निकम्मे हो जाते हैं और पवित्रता उनके मनसे विदा हो जाती है। जिससे उत्तम विचार व उत्तम कार्य नहीं होने पाते। उत्तम मनुष्य इन ऊपर लिखित नौ या अधिक गुणोंकी बदौलत ही इस नरभवकी घड़ियोंको ऐसे २ कामोंमें लगाते हैं जिससे वे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थोकी सिद्धिमें कुछ उन्नति ५ जाते हैं और जगतका उपकार कर जाते हैं।
आज हम अपने पाठकोंको एक उत्तम मनुष्यके जीवनका परिचय कराना चाहते हैं जिसमें ये ऊपर लिखित गुण कूट कूट कर भरे हुए थे व जिसने अपने पौरुषके बलसे गृहस्थ धर्मकी जो उन्नति की व अपनी उन्नतिसे जो दूसरोंका हित किया वह वचनसे अगोचर है। जिनका उस मानवसे रात्रि दिनका सम्बन्ध रहा है . वे अच्छी तरह जानते हैं कि उस मानवमें कैसी २ खूबीके गुण थे। आज वह मानव इस मानव पय्यायमेंसे चला गया है-उसकी आत्मा इस शरीरसे विदा होकर अन्य किसी देहमें चली गई है। यद्यपि अब उसके मन वचन कायके चरित्र दृष्टि में नहीं आते तो भी उस मानवने अपने जीवन में जो कुछ किया है वह कृत्य उसके सर्व जैसेके तैसे मौजूद हैं-वे मरे नहीं हैं।
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