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अध्याय पहिला |
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समय धैर्य ही एक ऐसा गुण है जो वारवार कोशिश किये जानेकी उत्तेजना देता है । और जो इस गुणको अपने गलेका हार बनाते और कभी आकुलित नहीं होते वे अपने काममें अवश्य सफल होते हैं ।
(७) नम्रता - - नम्रताकी भी मानवको बहुत बड़ी ज़रूरत है । जो मानव अपने पास धन, बल, तप, विद्या आदि बलोंको बढ़ते हुए देख करके भी अहंकार नहीं करते किन्तु सदा नम्र रहते हैं, वे ही बड़े पुरुष हैं। वे बिना कारण जगतको, अपना बन्धु बना लेते हैं। वास्तव में नम्रताकी छायाके नीचे सब कोई आना चाहते हैं । उसकी सुगंधको सर्व कोई सूंघते हैं। जो किसी भी बात में बलवान् होकर मान नहीं करते हुए नम्र रहते हैं वे ही दूसरोंसे गुण ले सक्ते व दे सक्ते हैं, स्वयं उपकार पा सक्ते व छोटेसे छोटेका भी उपकार कर सक्ते हैं।
(८) सत्यता - सत्य बोलना और सत्य व्यवहार मानवकी शोभा व उन्नतिका भंडार है । जो मनमें सोचकर कहते और उसी तरह वर्तन करते हैं वे ही सत्यवादी हैं । जो असत्यको सर्व पापों का सरदार समझते और उससे डरते हैं, जो वादा करते हैं उसको पूरा करते हैं, जो श्रीदशरथ व श्रीरामचंद्रकी भांति दृढ प्रतिज्ञाको निवाहनेवाले हैं वे ही कुछ काम कर जाते हैं। मनुष्यकी वाणी सचके बिना महा अनर्थकी करनेवाली होती है । सत्यता से किसीको दुःख नहीं होता । केवल सत्यतासे ही मनुष्य लौकिक व पारलौकिक सर्व तरहकी उन्नति कर सकते हैं ।
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