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असली तो तुम एक ही चीज बन सकते हो, जो अभी तक तुम बने नहीं। और कोई नहीं बना है। असली तो तुम एक ही चीज बन सकते हो जो तुम्हारे भीतर पड़ी है; जो तुम्हारी नियति है; जो तुम्हारा अंतरतम भाग्य है; जो तुम्हारे बीज की तरह छिपा है और वृक्ष की तरह खिलने को आतुर है । और तुम्हें कुछ भी पता नहीं कि वह क्या है। क्योंकि जब तक तुम बन न जाओ, कैसे पता हो ? तुमने जिनकी खबरें सुनी हैं उनमें से कोई भी तुम बननेवाले नहीं हो ।
बुद्ध, बुद्ध बने । बुद्ध को भी तो राम का पता था । राम नहीं बने बुद्ध । बुद्ध को कृष्ण का पता था, कृष्ण नहीं बने बुद्ध । बुद्ध, बुद्ध बने। तुम, तुम बनोगे। तुम तुम ही बन सकते हो, बस । और कुछ बनने की कोशिश की, झूठ हो जायेगा, विकृति हो जायेगी। आरोपण हो जायेगा। पाखंड बनेगा फिर । परमात्मा तो दूर, और दूर हो जायेगा। तुम पाखंडी हो जाओगे ।
मेरी सारी चेष्टा एक है: तुम्हें इस बात की याद दिलानी, कि तुम तुम ही बन सकते हो।
मैं यहां तुम्हें कुछ अन्यथा बनाने की कोशिश या उपाय नहीं कर रहा हूं। मेरी कोई चेष्टा ही नहीं कि तुम्हें कुछ और बना दूं । मेरी सिर्फ इतनी ही चेष्टा है कि तुम्हें इतना याद दिला दूं कि तुम कुछ और बनने की चेष्टा में मत उलझ जाना, अन्यथा चूक जाओगे । समय खोयेगा। शक्ति व्यय होगी। और तुम्हारा जीवन संकट और दुख और दारिद्र्य से भरा रह जायेगा ।
तुम्हारे भीतर एक फूल छिपा है। और कोई भी नहीं जानता कि वह फूल कैसा होगा। जब खिलेगा तभी जाना जा सकता है। जब तक बुद्ध न हुए थे, किसी को पता न था कि यह गौतम सिद्धार्थ कैसा फूल बनेगा। हां, कृष्ण का फूल पता था, राम का फूल पता था । लेकिन बुद्ध का फूल तो तब तक. हुआ था। अब हमें पता है। लेकिन तुम्हारा फूल अभी भी पता नहीं है। तुम्हारे भीतर कैसा कमल खिलेगा, कितनी पंखुड़ियां होंगी उसकी, कैसा रंग होगा, कैसी सुगंध होगी। नहीं, कोई भी नहीं
जानता ।
तुम्हारा भविष्य गहन अंधेरे में पड़ा है। तुम्हारा भविष्य बीज में छिपा है। बीज टूटे, बीज की तंद्रा मिटे, बीज जागे, अंकुरित हो, खिले, तो तुम भी जानोगे और जगत भी जानेगा। उसी जानने में जानना हो सकता है। उसके पहले जानने का कोई उपाय नहीं ।
इसलिए मैं तुमसे यह भी नहीं कह सकता कि तुम क्या बन जाओगे। भविष्यवाणी नहीं हो सकती। और यही आदमी की महिमा है कि उसके संबंध में कोई भविष्यवाणी नहीं हो सकती। आदमी कोई मशीन थोड़े ही है कि भविष्यवाणी हो सके। मशीन की भविष्यवाणी होती है। सब तय है। मशीन मुर्दा है। आदमी परम स्वातंत्र्य है; स्वच्छंदता है ।
और एक आदमी बस अपने जैसा अकेला है, अद्वितीय है। दूसरा उस जैसा न कभी हुआ, न कभी होगा, न हो सकता है। इस महिमा पर ध्यान दो। इस महिमा के लिए धन्यभागी समझो। परमात्मा तुम जैसा कभी कोई नहीं बनाया । परमात्मा दोहराता नहीं। तुम अनूठी कृति हो ।
लेकिन जब तुम्हारे भीतर फूल खिलना शुरू होगा तो यह विरोधाभास तुम्हें मालूम होगा। तुम्हें यह लगेगा...पूछा है : ‘आपको पाने के बाद मुझमें बहुत - बहुत रूपांतरण हुआ । और ऐसा भी लगता है कि कुछ भी नहीं हुआ।'
बिलकुल ठीक हो रहा है; तभी ऐसा लग रहा है। रूपांतरण भी होगा। महाक्रांति भी घटित होगी।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5