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और अपना मुंह ढांके हूं कफन से। शर्म और लज्जा में दबा हुआ आया हूं। 'आने न दिया बारे-गुनाह ने पैदल।'
और इतने गुनाह किये हैं कि पैदल आने की हिम्मत न जुटा सका। और इतने गुनाह किये कि उनका बोझ इतना है मेरे सिर पर कि पैदल आता भी तो कैसे आता? गठरी गुनाहों की बड़ी है, बोझिल है।
'ताबूत में कंधे पर सवार आया हूं' इसलिए ताबूत में, अरथी में, दूसरों के कंधे पर सवार होकर आ गया हूं।
यही तुम्हारी जिंदगी की कथा है। तुम यहां चल थोड़े ही रहे हो, ताबूत में जी रहे हो। तुम यहां अपने पैरों से थोड़े ही चल रहे हो, दूसरों के कंधों पर सवार हो। और जरा अपने चेहरे को गौर से देखना आईने में, तुम पाओगे कफन तुमने डाल रखा है चेहरे पर। मुर्दगी है। मौत का चिह्न है तुम्हारे चेहरे पर। जीवन का अभिसार नहीं, जीवन का आनंद-उल्लास नहीं, मौत की मातमी छाया है; मौत का अंधेरापन है।
तुम कर क्या रहे हो यहां सिवाय मरने के? रोज-रोज मर रहे हो, इसी को जीवन कहते हो। जबसे पैदा हुए, एक ही काम कर रहे हो : मरने का। रोज-रोज मर रहे हो, प्रतिपल मर रहे हो, और इसको जीना कहते हो। इससे ज्यादा और जीने से दूर क्या होगा? यह जीने के बिलकुल विपरीत है। नाचे? गुनगुनाये ? गीत प्रगट हुआ? प्रसन्न हुए? । . नहीं, अभी जीवन से अभिसार नहीं हुआ। अभी जीवन से संबंध ही नहीं जुड़ा। अभी जीवन से संभोग नहीं हुआ। बस, ऐसे ही धक्के-मुक्के खा रहे हो। ठीक है। ऐसी स्थिति है आदमी की। होनी नहीं चाहिए। बदली जा सकती है। . बदलने के लिए कुछ करना पड़े। और बदलने के लिए सिर्फ प्रार्थना करने से कुछ भी न होगा। क्योंकि प्रार्थना में फिर वही मांग, फिर वही भिखमंगापन। बदलने के लिए तुम्हें अपने जीवन की आमूल-दृष्टि बदलनी होगी।
परमात्मा के सहारे जीने की फिक्र मत करो, अपने को रूपांतरित करो, अपने को अपने हाथ में लो। और तुम यह कर सकते हो। कोई कारण नहीं है, कोई बाधा नहीं है। जो नर्क की यात्रा कर सकता है वह स्वर्ग की यात्रा क्यों नहीं कर सकता? जो पाप निर्मित कर सकता है वह पुण्य को जन्म क्यों नहीं दे सकता? क्योंकि वही ऊर्जा पाप बनती है और वही ऊर्जा पुण्य बनती है। जिस ऊर्जा के दुरुपयोग से तुम आज अपना चेहरा प्रकट करने में डर रहे हो, उसी ऊर्जा का सदुपयोग, सृजनात्मक उपयोग
र तम्हारे चेहरे पर एक आभा आ जायेगी। एक सरज प्रगट होगा। एक चांद खिलेगा, एक चांदनी बिखरेगी।
ऊर्जा वही है। जरा भी फर्क नहीं करना है। क्रोध करुणा बन जाता है, जरा समझदारी और जागरूकता की जरूरत है। काम राम बन जाता है, जरा-सी समझ की जरूरत है। और संभोग समाधि बन जाती है। __ जीवन को अपने हाथ में लो। कहीं ऐसा न हो कि प्रार्थना भी तुम्हारा बचने का ही उपाय हो। कर ली प्रार्थना, कह दिया प्रभु, बदलो; फिर नहीं बदला तो अब हम क्या करें? तुमने प्रभु पर जिम्मा छोड़
| अपनी बानी प्रेम की
बानी
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