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अभिव्यक्ति देते हैं : महावीर से वाणी झरी। जैसे सूरज से रोशनी झरती है, जैसे फूल से गंध झरती है, ऐसी महावीर से वाणी झरी। ___ अब फूल कैसे रोके गंध को? और सूरज कैसे रोके प्रकाश को? जब भीतर का दीया जल गया, तो रोशनी झरेगी। कभी शून्य से झरेगी, कभी शब्द से झरेगी, लेकिन रोशनी झरेगी। कभी शब्द से बोलेगी, कभी शून्य से बोलेगी, लेकिन बोलेगी। बोलकर रहेगी।
तुम पूछते हो, 'उपदेश क्यों?'
तुम्हें अभी उपदेष्टा मिला नहीं। तुमने उपदेशक देखे होंगे, तुमने व्याख्यान करनेवाले देखे होंगे, तुमने उपदेष्टा नहीं जाना। तुम्हें उपदेश की गहराई का कुछ पता नहीं है।
फर्क क्या है उपदेश में और व्याख्यान में?
यही फर्क है। महावीर ने कहा है, मैं उपदेश देता हूं, आदेश नहीं। दो फर्क समझ लो। व्याख्यान और उपदेश में फर्क है। एक, व्याख्यान में तुम चेष्टारत हो, तुम आग्रहपूर्वक कुछ थोपने के उपाय कर रहे हो किसी के ऊपर। व्याख्यान में चेष्टा है, श्रम है, थकान है। दूसरा राजी हो जाये तो प्रसन्नता है। दूसरा राजी न हो तो अप्रसन्नता है। व्याख्यान में सफलता है, असफलता है; सुख-दुख है। उपदेश में न कोई सफलता है, न कोई विफलता है। जो बात भीतर उमगी थी, वह कही गई। जो बात भीतर उठी थी, वह झरी। जो झरना भीतर फूटा, बहा। किसी ने पी लिया ठीक; किसी ने न पीया, उसकी मर्जी। वह जाने! उसका भाग्य! . उपदेश बड़ी नैसर्गिक प्रक्रिया है। इसलिए महावीर एक और भेद करते हैं, वे कहते हैं, मैं उपदेश
देता हूं, आदेश नहीं। आदेश का मतलब होता है, जो मैं कहता हूं, ऐसा करो। उपदेश का यह अर्थ नहीं होता है कि जो मैं कहता हूं, ऐसा करो। उपदेश का अर्थ होता है, जो मुझे हुआ है, वह बांट रहा हूं। जंच जाये, कर लेना; न जंचे, फेंक देना। काम आ जाये ठीक; काम न आये, भूल जाना। आदेश नहीं है कि करना ही। ऐसी आज्ञा नहीं है उपदेश में कि करना ही। पक्षी गीत गाते हैं; तुम्हें सुनना हो सुन लिया। फूल खिले, तुम्हें देखना है देख लिया। रात चांद उगा, आदेश नहीं है कि देखो, सारी दुनिया देखो, खड़े हो जाओ सावधान और मेरी तरफ देखो-नहीं, चांद खिला, चांद चला, चांद अठखेलियां करने लगा, आकाश में उसका विलास चला! कोई देख ले, धन्यभागी; न देखे, उसकी मौज। कोई भी न देखे पृथ्वी पर, तो भी चांद को इससे फर्क नहीं पड़ता। उपदेश निर्झर है।
तुम पूछते हो, 'उपदेश क्यों?' ।
तुम्हें उपदेश का पता ही नहीं कि उपदेश का अर्थ क्या होता है। शब्द को भी समझने की कोशिश करो, क्योंकि संस्कृत, प्राकृत, पाली, इनके जो शब्द हैं, वे साधारण शब्द नहीं हैं। ये भाषाएं ज्ञानियों की निर्झरनी से इस तरह भरी हैं कि इनके एक-एक शब्द में बड़ा अर्थ है। उपदेश का अर्थ क्या होता है-शाब्दिक अर्थ? देश का अर्थ होता है, 'स्पेस'। देश का अर्थ होता है, विस्तार, आयाम। उपदेश का अर्थ होता है, उस विस्तार के निकट होना। जो उपनिषद का अर्थ होता है... । उपनिषद का अर्थ होता है, जिसको घट गया है, उसके पास बैठ जाना। गुरु के पास होना-उपनिषद। उपवास का अर्थ होता है, वह जो भीतर बसा है, उसके पास हो जाना। वह जो तुम्हारे भीतर आत्मा है, उसके निकट आ जाने का नाम उपवास।
दिल का देवालय साफ करो ।
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