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मत करना। जबरदस्ती दबाना मत। साधो सहज समाधि भली। उसे स्मरण रखना। उतना स्मरण रहे, तुम कभी भटकोगे नहीं। जो तुम्हारे स्वभाव के अनुकूल पड़े वही तुम्हारे लिए सत्य का मार्ग है। स्वभाव, सहजता, इन कसौटियों पर कसते रहना।
अक्सर उलटा होता है। अक्सर जो तुम्हारे अनुकूल नहीं पड़ता उसको तुम थोपते हो। उपवास काम नहीं आता, उपवास करते हो। मरते हो भूखे, मगर उपवास करते हो। दुखवादी हो। खुद को दुख देने में रस लेते हो। जो बात तुम्हारे सहज नहीं मालूम होती, उसमें एक तरह का अहंकार को आकर्षण मालूम होता है। और अहंकार बाधा है। __इसको मैं फिर तुम्हें दोहरा दूं: अहंकार का एक आकर्षण है कि जो अनुकूल न पड़े उसको चुन ले। क्योंकि अनुकूल को चुनने में तो अहंकार बचता नहीं, प्रतिकूल को चुनने में बचता है। जितना बड़ा पहाड़ हो, अहंकार उतना ही उसको चढ़ना चाहता है। जितनी कठिन बात हो, उतना ही करना चाहता है। सरल में अहंकार को कोई रस नहीं। क्योंकि सरल में क्या सार!
मैंने देखा, मुल्ला नसरुद्दीन एक झील के किनारे बैठा मछली मार रहा है। मैंने उससे कहा कि नसरुद्दीन, कुछ पकड़ीं? उसने कहा कि नहीं, आज दिन भर तो हो गया, सूरज ढलने को आ गया, एक भी मछली नहीं पकड़ी। मैंने कहा, तुम्हें पता है, इस झील में मछली है ही नहीं। उसने कहा, मुझे पता है। तो मैंने कहा, पास ही दूसरी झील है, जहां मछलियां ही मछलियां हैं। मुल्ला ने कहा, वहां पकड़ने में क्या सार। वहां तो कोई भी पकड़ ले। बच्चे पकड़ लें। इसीलिए तो यहां बैठा हं कि यहां कोई भी नहीं पकड़ पाता। यहां पकड़ी तो कुछ पकड़ी। वहां पकड़ी तो क्या पकड़ी! ___अहंकार हमेशा असंभव को संभव करना चाहता है और असंभव संभव होता नहीं। अहंकार दो और दो को तीन बनाना चाहता है या पांच बनाना चाहता है और ऐसा कभी होता नहीं।
तो अहंकार के कारण अक्सर लोग उसे चुन लेते हैं जो कठिन है। और कठिन से कभी कोई नहीं पहुंचता। साधो सहज समाधि भली। जो तुम्हारे अनुकूल पड़ जाये, बिलकुल स्वाभाविक हो। इतनी सरलता से हो जाये कि कानोंकान खबर न पता चले। फूल की तरह हो जाये, कांटे की तरह न चुभे। वही मार्ग है। ___ इतना स्मरण रहे तो तुम भटकोगे नहीं, पहुंच जाओगे। पहुंचना सुनिश्चित है। सहज मार्ग से कभी कोई भटका ही नहीं है।
आज इतना ही।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5