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है? और कठिनाई और भी थी कि उसके गले में जो तख्ती लगी थी, सबसे ज्यादा कीमत की थी।
अंततः एक आदमी ने पूछा कि महानुभाव, बड़ा आश्चर्य है, इस स्त्री को हम पहचान नहीं पा रहे हैं। यह कौन है आपकी सेविका? और ऐसी कुरूप और ऐसी भोंडी कि इसे देखकर ही जी मिचलाता। और सबसे ज्यादा कीमत लगा रखी है। बात क्या है? कोई खरीददार गया भी नहीं इसके पास। यह देवी कौन है? इसके संबंध में कुछ बता दें। शैतान से उस ग्राहक ने पछा।
शैतान ने कहा, ओह, यह? यह मेरी सबसे प्रिय और वफादार गुलाम है। मैं इसके सहारे बड़ी आसानी से लोगों को अपने शिकंजे में कस लेता हूं। क्यों, पहचाना नहीं इसे? बहुत कम लोग इसे पहचानते हैं इसीलिए तो इसके द्वारा धोखा देना आसान होता है। इसे कोई पहचानता नहीं मगर यह मेरा दाहिना हाथ है।
फिर शैतान अट्टहास कर उठा और बोला, महत्वाकांक्षा है यह। महत्वाकांक्षा! एंबीशन! यह सबसे भोंडी और सबसे कुरूप मेरी सेविका है, लेकिन सबसे कुशल।
आदमी जीता महत्वाकांक्षा में। यह पा लूं, यह मिल जाये, और मिल जाये, और ज्यादा मिल जाये। तुम उसी महत्वाकांक्षा को धर्म की दिशा में मत फैलाओ।
संन्यास सत्य को पाने की महत्वाकांक्षा नहीं है, संन्यास महत्वाकांक्षा का त्याग है। संन्यास मोक्ष को पाने की नई चाह नहीं है, संन्यास सारी चाह की व्यर्थता को देख लेने का नाम है। अब तुम और मत चाहो। अब तुम चाह को जाने दो। अब इसे विदा कर दो। जिस दिन तुम चाह को विदा कर दोगे उसी दिन तुम शैतान के शिकंजे के बाहर हो गये हो। और जिस क्षण चाह को तुमने विदा कर दिया उसी क्षण तुम पाओगे, जो तुमने सदा चाहा था वह होने लगा। वह चाह के कारण ही नहीं हो पाता था। नहीं, ऐसी आकांक्षा न करो।
- अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
__एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है यह मिट जाने की हसरत भी जाने दो। यह हसरत भी उपद्रव है। जल्दी न करो। मौत की इतनी क्या जल्दी!
__ मौत है वह राज जो आखिर खुलेगा एक दिन
जिंदगी वह है मुअम्मा कोई जिसका हल नहीं मौत तो एक दिन खुल ही जायेगी, एक दिन हो ही जायेगी। उसकी क्या जल्दी में पड़े हो। मरने की भी क्या चाहत। जिंदगी को समझ लो। जिंदगी को समझ लिया, जिंदगी खुल गई। और जहां जिंदगी खुल गई वहां मौत खुल गई। क्योंकि मौत कुछ भी नहीं, जिंदगी का अंतिम शिखर है। मौत कुछ भी नहीं जिंदगी की चरम अवस्था है। मौत कछ भी नहीं. जिंदगी का आखिरी गीत है। जिंदगी समझ ली तो मौत समझ में आ जाती है। होना समझ लिया तो न होना समझ में आ जाता है।
इसलिए तो तमसे कहता हं. संसार से भागना मत। संसार को समझ लिया तो मोक्ष समझ में आ जाता है। लेकिन तुम जल्दबाजी में पड़ते हो। संसार को बिना समझे तुम मोक्ष को समझने चल पड़ते हो। फिर तुम्हारा मोक्ष भी नया संसार बन जाता है।
Ml.जा
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5
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