Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 404
________________ गाली-गलौज देना ठीक से आता न होगा या गाली जो आती होंगी उनसे काम न चलता होगा। इसकी मजबूरी तो समझ । यह कुछ कहना चाहता था। कई बार ऐसा होता है, तुम किसी को गले लगाते हो, क्योंकि तुम कुछ कहना चाहते थे, जो शब्दों में नहीं आता था। तुम किसी का हाथ लेकर दबाते हो; तुम कुछ कहना चाहते थे जो शब्दों में नहीं आता, हाथ दबाकर कहते हो। तुम किसी के गले में फूल की माला डाल देते हो; कुछ कहना चाहते थे, नहीं कहा जा पाता तो फूल से कहते हो। कभी कुछ कहना चाहते हो, आंख आंसुओं से नम हो जाती है। कहना चाहते थे, नहीं कह पाये, आंख आंसुओं से कहती है। यह आदमी कुछ कहना चाहता था। कोई कांटा इसके भीतर गड़ रहा है। थूककर इसने फेंक लिया, चलो यह निर्भर हुआ । . वह आदमी खड़ा ये सब बातें सुन रहा है। वह तो बड़ा मुश्किल में पड़ गया। वह तो वहां से भागा घर । वह तो चादर ओढ़कर सो रहा । उसको तो भारी पश्चात्ताप होने लगा, वह तो रोने लगा। वह दूसरे दिन क्षमा मांगने आया । वह बुद्ध के चरणों पर गिर पड़ा। उसने कहा, मुझे क्षमा कर दें । बुद्ध ने कहा, पागल ! क्षमा कौन करे ? जिसको तूने गाली दी थी वह अब है कहां ? चौबीस घंटे में गंगा बहुत बह गई। जिस गंगा को तू गाली दे गया था वह गंगा अब है कहां ? तूने मुझे गाली दी थी, चौबीस घंटे हो गये। बात आई-गई हो गई। पानी पर खिंची लकीरें टिकती तो नहीं। अब तू क्षमा मांगने किससे आया है? अब मैं तुझे क्षमा कैसे करूं? मैंने कोई गांठ नहीं बांधी। बांधता तो खोलता। अब मैं क्या खोलूं? मैं तुझसे इतना ही कह सकता हूं, तू भी अब यह गांठ मत बांध | बात आई-गई हो गई। आया हवा का झोंका, चला गया। अब तू पश्चात्ताप भी मत कर। यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है बुद्ध ने कही : अब तू पश्चात्ताप भी मत कर । मेरे पास लोग आते हैं। कोई कहता है, हम क्रोध करते हैं फिर पश्चात्ताप करते हैं। लेकिन फिर क्रोध हो जाता है, फिर पश्चात्ताप करते हैं, फिर क्रोध हो जाता है। हम क्या करें? मैं उनसे कहता हूं,. तुमने क्रोध छोड़ने की जीवन भर कोशिश की । अब कृपा करके इतना करो, पश्चात्ताप छोड़ दो। वे कहते हैं, इससे क्या लाभ होगा ? पश्चात्ताप कर-करके क्रोध नहीं छूटा और आप हमें और उल्टी शिक्षा दे रहे हैं - पश्चात्ताप छोड़ दो। मैं उनसे कहता हूं, तुम कुछ तो छोड़ो। पश्चात्ताप छोड़ो; क्रोध तो छूटता नहीं। एक उपाय करके देखो। क्योंकि पश्चात्ताप सकता है, क्रोध को बनाये रखने में ईंधन का काम कर रहा है। तुमने किसी को गाली दी, क्रोध हो गया। घर आये, सोचा यह तो बड़ी बुरी बात हो गई। तुम्हारे अहंकार की प्रतिमा खंडित हुई । तुम सोचते हो, तुम बड़े सज्जन, संतपुरुष ! तुमसे गाली निकली ? यह होना ही नहीं था। अब तुम पश्चात्ताप करके लीपापोती कर रहे हो। वह जो गाली ने तुम्हारी प्रतिमा पर काले दाग फेंक दिये, उनको धो रहे हो पश्चात्ताप करके कि मैं तो भला आदमी हूं। हो गया, मेरे बावजूद हो गया। करना नहीं चाहता था, हो गया । परिस्थिति ऐसी आ गई कि हो गया। चूक हो गई लेकिन चूक करने की कोई मंशा न थी । देखो पश्चात्ताप कर रहा हूं, अब और क्या करूं? पश्चात्ताप के तुम फिर पुताई कर ली। फिर तुम उसी जगह पर पहुंच गये जहां तुम क्रोध करने के पहले थे। अब तुम फिर क्रोध करने के लिए तैयार हो गये। अब फिर तुम सज्जन, साधुपुरुष हो गये। मैं तुमसे कहता हूं, कम से कम पश्चात्ताप न करो। इतनी गांठ क्या बांधनी! हो गया सो हो गया। 390 अष्टावक्र: महागीता भाग-5

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