Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 417
________________ सब छीन लेगी वहां कैसा इकट्ठा करना ? जहां मौत सब पोंछ देगी वहां कैसे सपने संजोने ? जहां मौत आकर सब नष्ट कर देगी वहां क्या बनाना ? लेकिन एकनाथ ने उससे कहा कि तुझे लाख समझाया, तेरी समझ में न आया । यही समझाता था सब, लेकिन जब तक तुझे जोर से चोट न मारी गई तब तक तेरी बुद्धि में प्रविष्ट न हुआ। और कहानी का मुझे आगे पता नहीं क्या हुआ। जहां तक मैं समझता हूं, वह आदमी उठकर बैठ गया होगा और उसने कहा होगा, छोड़ो ! अगर अभी मरना नहीं है तो महाराज, तुम अपने घर जाओ, हमें अपना संसार देखने दो। कहानी का मुझे आगे पता नहीं, कहानी आगे लिखी नहीं है। शायद इसीलिए नहीं लिखी है। क्योंकि मौत की चोट में अगर थोड़ी-सी उसको समझ भी आई होगी तो मौत की चोट के हटते ही समझ भी हट गई होगी। वह चोट भी तो जबरदस्ती हो गई न! आयोजित हो गई। मौत उसे थोड़े ही दिखाई पड़ी है, मान ली है। मानने में घबड़ा गया। अब जब फिर पता चला होगा कि अभी जिंदगी काफी बची है तो वह कहा होगा कि महाराज, आयेंगे फुरसत से, सत्संग करेंगे, लेकिन अभी और काम हैं। सात दिन के काम भी इकट्ठे हो गये हैं, वे भी निपटाने हैं । और उस आदमी ने शायद एकनाथ को कभी क्षमा न किया होगा कि इस आदमी ने भी खूब मजाक की। ऐसी भी मजाक की जाती है महाराज ? संतपुरुष होकर और ऐसी मजाक करते हैं? शायद उसने एकनाथ का सत्संग भी छोड़ दिया होगा कि फिर यह आदमी कुछ भरोसे का नहीं। फिर किसी दिन कुछ ऐसी उल्टी-सीधी बात कह दे और झंझट खड़ी कर दे। आगे लिखा नहीं गया है। नहीं लिखे जाने का मतलब साफ है। नहीं तो हिंदुस्तान में जब कहानियां लिखी जाती हैं तो पूरी लिखी जाती हैं। हिंदुस्तानी ढंग कहानी का यह है कि फिर वह आया होगा, महाराज के चरणों में गिर पड़ा, उसने संन्यास ले लिया और उसने कहा कि अब बस मैं बदल गया । मगर यह लिखा नहीं है, तो यह हुआ नहीं है। यहां तो ऐसा है, न भी होता हो तो भी अंत ऐसा ही होता है। सुखांत होती हैं हिंदुस्तान की कहानियां । उसमें दुखांत कभी नहीं होता । सब अंत में सब ठीक हो जाता है। दुर्जन सज्जन बन जाते, संसारी मोक्षगामी हो जाते। सब अंत में ठीक हो जाता है। मरते-मरते तक हम कहानी को ठीक कर लेते हैं। कहानियां हैं कि मर रहा है कोई, उसके लड़के का नाम नारायण है। उसने कभी जिंदगी भर भगवान का नाम नहीं लिया। मरते वक्त वह बुलाया, 'नारायण, नारायण।' अपने बेटे को बुला रहा है, ऊपर के नारायण धोखे में आ गये। वह मर गया नारायण कहते-कहते; उसको मोक्ष मिला। अब जिन्होंने ये कहानियां गढ़ी हैं, बड़े बेईमान लोग रहे होंगे। तुम ईश्वर को धोखा देते ऐसे ? और ईश्वर धोखा खाता ! तो ईश्वर तुमसे गया- बीता गया। वह अपने बेटे को बुला रहा है, ऊपर के नारायण समझे, मुझे बुला रहा है । सोचा कि चलो बेचारा जिंदगी भर नहीं बुलाया, अब तो बुला लिया। ऐसे आखिर में हमने कहानी ठीक कर दी। जमा दी सब बात, सब ठीक-ठीक हो गया। जिंदगी भर के पाप... दो बार उसने नारायण को बुला दिया, वह भी अपने बेटे को बुला रहा है। शायद लोग अपने बेटों के नाम इसलिए भगवान के रखते हैं: नारायण, विष्णु, कृष्ण, राम, खुदाबक्श। इस तरह के नाम रख लेते हैं कि चलो इसी बहाने । मरते वक्त खुदाबक्श को ही बुला रहे हैं, उसी वक्त खुदा सुन लिया और मुक्ति हो गई। ने मन का निस्तरण 403

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