Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 421
________________ जाने दो। इसके जाते ही— निस्तर्षमानसः । तुम मन का निस्तरण कर गये। यह मैं मन का संग्रहीभूत, रूप है। इसके पार तुम्हारा साक्षी है। साक्षीरस है। रसो वै सः । मन का निस्तरण आज इतना ही । 407

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