Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 408
________________ ने भेजा है इसलिए आ गया हूं। भूल हो गई है। क्यों उन्होंने भेजा है, किस पाप का मुझे दंड दिया है यह भी मैं नहीं जानता। लेकिन अब आ गया हूं तो आपसे यह पूछना है कि यह अफवाह आपने किस भांति उड़ा दी है कि आप ज्ञान को उपलब्ध हो गये हैं? यह क्या हो रहा है यहां? यह राग-रंग चल रहा है। इतना बड़ा साम्राज्य, यह महल, यह धन-दौलत, यह सारी व्यवस्था, इस सबके बीच में आप बैठे हैं तो ज्ञान को उपलब्ध कैसे हो सकते हैं? त्यागी ही ज्ञान को उपलब्ध होते हैं। जनक ने कहा, तुम जरा बेवक्त आ गये। यह कोई सत्संग का समय नहीं है। तुम एक काम करो, मैं अभी उलझा हूं। तुम यह दीया ले लो। पास में रखे एक दीये को दे दिया और कहा कि तुम पूरे महल का चक्कर लगा आओ। एक-एक कमरे में हो आना। मगर एक बात खयाल रखना, इस महल की एक खूबी है। अगर दीया बुझ गया तो फिर लौट न सकोगे, भटक जाओगे। बड़ा विशाल महल था। तो दीया न बुझे इसका खयाल रखना। सब महल को देख आओ। तुम जब तक लौटोगे तब तक मैं फुरसत में हो जाऊंगा, फिर सत्संग के लिए बैठेंगे। वह गया युवक उस दीये को लेकर। उसकी जान बड़ी मुसीबत में फंसी। महलों में कभी आया भी नहीं था। वैसे ही यह महल बड़ा तिलिस्मी, इसकी खबरें उसने सुनी थीं कि इसमें लोग खो जाते हैं; और एक झंझट। और यह दीया अगर बुझ जाये तो जान पर आ बने। ऐसे ही संसार में भटके हैं, और संसार के भीतर यह और एक झंझट खड़ी हो गई। अभी संसार से ही नहीं छूटे थे और एक और मुसीबत आ गई। लेकिन अब जनक ने कहा है और गुरु ने भेजा है तो वह दीये को लेकर गया बड़ा डरता-डरता। महल बड़ा सुंदर था; अति सुंदर था। महल में सुंदर चित्र थे, सुंदर मूर्तियां थीं, सुंदर कालीन थे, लेकिन उसे कुछ दिखाई न पड़ता। वह तो एक ही चीज देख रहा है कि दीया न बुझ जाये। वह दीये को सम्हाले हुए है। और सारे महल का चक्कर लगाकर जब आया तब निश्चित हुआ। दीया रखकर उसने कहा कि महाराज, बचे। जान बची तो लाखों पाये। बुद्ध लौटकर घर को आये। यह तो एक जान पर ऐसी मुसीबत हो गई, हम फकीर आदमी और यह महल जरूर उपद्रव है, मगर दीये ने बचाया। सम्राट ने कहा, छोड़ो दीये की बात; तुम यह बताओ, कैसा लगा? उसने कहा, किसको फुरसत थी देखने की? जान पर फंसी थी। जान पर आ गई थी। दीया देखें कि महल देखें? कछ देखा नहीं। सम्राट ने कहा, ऐसा करो, अब आ गये हो तो रात रुक जाओ। सुबह सत्संग कर लेंगे। तुम भी थके हो और यह महल का चक्कर भी थका दिया है। और मैं भी थक गया हूं। बड़े सुंदर भवन में बड़ी बहुमूल्य शय्या पर उसे सुलाया। और जाते वक्त सम्राट कह गया कि ऊपर जरा खयाल रखना। ऊपर एक तलवार लटकी है। और पतले धागे में बंधी है—शायद कच्चे धागे में बंधी हो। जरा इसका खयाल रखना कि यह कहीं गिर न जाये। और इस तलवार की यह खूबी है कि तुम्हारी नींद लगी कि यह गिरी। उसने कहा, क्यों फंसा रहे हो मुझको झंझट में? दिन भर का थका-मांदा जंगल से चलकर आया, यह महल का उपद्रव और अब यह तलवार! सम्राट ने कहा, यह हमारी यहां की व्यवस्था है। मेहमान आता है तो उसका सब तरह का स्वागत करना। रात भर वह पड़ा रहा और तलवार देखता रहा। एक क्षण को पलक झपकने तक में घबड़ाये। 394 अष्टावक्र: महागीता भाग-5

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