Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 398
________________ कि मृत्यु घटी? क्योंकि जन्म और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक ही यात्रा के दो पड़ाव हैं। जिसके हाथ में जन्म है उसी के हाथ में मृत्यु है। अगर जन्म तुम्हारे हाथ में है तो मृत्यु भी तुम्हारे हाथ में है। और अगर जन्म तुम्हारे हाथ में नहीं है तो ही यह संभव है कि मृत्यु भी तुम्हारे हाथ में न हो। बीज भी तुम्हारे हाथ में नहीं है, फल भी तुम्हारे हाथ में नहीं। __ कृष्ण कहते हैं फल को छोड़ दो, अष्टावक्र कहते हैं बीज को ही छोड़ दो न! सब छूट गया। क्योंकि फिर बीज से ही निकलेगा वृक्ष। फिर वृक्ष में ही लगेंगे फल और फिर लगेंगे बीज। फल तक प्रतीक्षा करोगे, फल तक प्रतीक्षा करने में बीच में जो तुम गलत यात्रा करोगे वह इतनी सघन हो जायेगी, वह आदत इतनी मजबूत हो जायेगी कि तुम छोड़ न पाओगे। इसलिए एक मजेदार घटना घटती है, कि गीता के भक्त जब फल बुरा हो जाता है तब तो परमात्मा पर छोड़ देते हैं और जब फल अच्छा हो जाता है तो नहीं छोड़ पाते। शुभ को छोड़ना फिर मुश्किल हो जाता है। अशुभ को तो छोड़ देते हैं। ____ मैंने सुना है, ऐसा एक गीताभक्त एक गांव में रहता था। उसने बड़ी सुंदर बगिया लगाई थी। और वह सबको बताता था अपनी बगिया कि देखो, ऐसे फूल किसी और बगीचे में नहीं खिलते और ऐसी हरियाली किसी और बगीचे में नहीं है। यह मेरी मेहनत का फल है। और रोज गीता पढ़ता था। । भगवान ने सोचा कि यह गीता रोज पढ़ता, फलाकांक्षा त्यागो ऐसा चिंतन-मनन करता लेकिन बगिया मैंने लगाई है।' इसके वृक्षों को हरा मैं कर रहा हूं लेकिन यह कहता है कि मैंने लगाई है। इसके वृक्षों पर फूल मैं लगा रहा हूं, लेकिन यह कहता है, मेरे फूल बड़े हैं। इसके वृक्षों पर वर्षा मैं करता, सूरज मैं बरसाता और यह कहता है कि मैंने यह सब इतना सुंदर...इतने सुंदर को जन्म दिया है। तो भगवान आये एक दरिद्र ब्राह्मण के वेश में। पूछा उससे; उसने कहा कि मैंने लगाई है। आओ दिखायें। सब दिखाया। और तभी भगवान ने व्यवस्था कर रखी थी-एक गाय उसके बगीचे में घुस गई। वह तो बगीचा दिखला रहा था, एक गाय बगीचे में घुस गई। वह तो पागल हो गया। उस गाय ने उसके सुंदरतम पौधे चर डाले; उसके गुलाब चर डाले। वह तो उठाकर एक लट्ठ दौड़ा, गाय को मार दिया। भूल ही गया कि ब्राह्मण हूं। भूल ही गया कि मैं बीच में न आऊं। जिसके फूल हैं उसी की गाय है। इतनी जल्दबाजी न करूं। और जब गाय को मार दिया लट्र और गाय मर गई तो घबडाया. क्योंकि गौहत्या तो भारी पाप। और इस आदमी ने भी देख लिया-यह जो भिखारी. जिसको वह घमा रहा था। और उस भिखारी ने कहा, यह तमने क्या किया? तो उस ब्राह्मण ने कहा, मैं करनेवाला कौन? अरे सब प्रभ कर रहा है। कहा नहीं गीता में भगवान ने कि हे अर्जुन! जिनको तू देखता है ये जीवित हैं, इनको मैं पहले ही मार चुका हूं। तू तो निमित्तमात्र है। यह गाय मरने को थी महाराज! मैंने मारी नहीं। मुझे तो निमित्त बना लिया है। और वह भिखारी हंसने लगा। और उसने कहा कि तुझे निमित्त बनाया गाय को मारने में, और फूल खिलाने में तुझे निमित्त नहीं बनाया? वृक्षों को हरा बनाने में तुझे निमित्त नहीं बनाया? ये वृक्ष तूने लगाये हैं और गाय परमात्मा ने मारी? मीठा-मीठा गप, कडुवा-कडुवा थू; ऐसा मन का तर्क है। अच्छा-अच्छा चुन लूं। अच्छे-अच्छे 384 अष्टावक्र: महागीता भाग-5 -

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