Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 387
________________ ही दे रहा हूं तो क्या कंजूसी करूं! दिल खोलकर दे देता हूं। सुंदर से सुंदर नाम जो खयाल में आता है, तुम्हें दे देता हूं। इससे तुम ध्यान रखना कि तुम्हारे लिए चुनौती है। तुम इससे यह मत समझ लेना कि यह तुम हो गये। यह तुम्हें होना है। नाम अभी सार्थक है नहीं, संभावना है, यह तुम्हें होना है। किसी को मैं नाम देता हूं, सच्चिदानंद। यह तुम्हें होना है। तुम यह मत समझ लेना कि हो गये! मैंने नाम दे दिया तो बात खतम। अब क्या करना? जो होना था सो हो गये। सच्चिदानंद हो गये। इतना सस्ता नहीं है। आदमी एक संभावना है होने की। आदमी है नहीं, आदमी होने की संभावना है, एक बीज है। पुरानी कथा है कि परमात्मा ने जब प्रकृति बनाई, सब बनाया और फिर आदमी को बनाया, तो आदमी को उसने मिट्टी से बनाया। जब आदमी बन गया तो परमात्मा ने सारे देवताओं को इकट्ठा करके कहा कि देखो, मेरी श्रेष्ठतम कृति यह मनुष्य है। इससे ऊपर मैंने कुछ भी नहीं बनाया। यह मेरी प्रकृति के सारे विस्तार में सबसे श्रेष्ठ, सबसे गरिमाशाली। लेकिन एक संदेहवादी देवता ने कहा, यह तो ठीक है, लेकिन मिट्टी से क्यों बनाया? निकृष्टतम चीज से बनाई श्रेष्ठतम चीज, यह कुछ समझ में नहीं आती। अरे, सोने से बनाते! कम से कम चांदी से बनाते। न सही चांदी, लोहे से बना देते। मिट्टी! कुछ और न मिला? निकृष्टतम से श्रेष्ठतम को बनाया। ____ तो परमात्मा हंसने लगा। उसने कहा, जिसे श्रेष्ठतम बनना हो उसे निकृष्टतम से यात्रा करनी होती है। जिसे स्वर्ग जाना हो उसे नर्क में पैर जमाने पड़ते। जिसे ऊपर उठना हो उसे निम्नतम को छूना पड़ता। . और फिर परमात्मा ने कहा, तुमने कभी सोने में से किसी चीज को उगते देखा? चांदी में से कोई चीज उगते देखी? बो दो बीज सोने में, कभी उगेगा नहीं, मर जायेगा। मिट्टी भर में उगता है कुछ। और मनुष्य एक संभावना है, एक आश्वासन है। अभी मनुष्य को होना है, अभी हो नहीं गया। हो सकता है। होने की सब व्यवस्था कर दी है लेकिन होना पड़ेगा। इसलिए मिट्टी से बनाया है, क्योंकि मिट्टी में ही बीज फूटता है, अंकुर निकलते हैं, वृक्ष पैदा होते, फूल लगते, फल लगते, सुंगध फैलती। महोत्सव घटित होता है। मिट्टी में ही संभावना है। सोने की कोई संभावना नहीं। सोना तो मुर्दा है, चांदी तो मुर्दा है। इसीलिए तो मरे-मरे लोग सोने-चांदी को पूजते हैं। जिंदा लोग मिट्टी को पूजते हैं। जितना मरा आदमी उतना ही सोने का पूजक। जितना जिंदा आदमी उतना उसका मिट्टी से मोह, मिट्टी से लगाव, मिट्टी से प्रेम। मिट्टी जीवन है। ठीक कहा ईश्वर ने कि बीज मिट्टी में फेंक दो तो खिलता, फैलता, बड़ा होता। __ मनुष्य एक संभावना है। मनुष्य यात्रा है, अंत नहीं। अभी मनुष्य को होना है, अभी मनुष्य हुआ नहीं। सारी क्षमता पड़ी है छिपी अचेतन में; प्रगट होना है, अभिव्यक्त होना है। गीत तुम लेकर आये हो, अभी गाया नहीं। तुम्हारी वीणा तो है तुम्हारे पास, लेकिन तुम्हारी उंगलियों ने अभी छुआ नहीं। जब मैं तुम्हें नाम देता हूं तो सिर्फ एक संभावना देता हूं। कहता हूं, सच्चिदानंद हो जाना। इसलिए सच्चिदानंद नाम दे देता हूं। नाम को तुम ऐसा मत समझ लेना कि तुम सच्चिदानंद हो इसलिए मैंने सच्चिदानंद कह दिया है। होते तब तो कहना क्या था! होते तब तो दीक्षा की भी कोई जरूरत न थी। अवनी पर आकाश गा रहा 373

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