Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 386
________________ पापी हैं वैसा पापी था। लेकिन यह नाम एक मुसीबत हो गई। तो उसने अपने आचार्य से प्रार्थना की, भंते, मेरा नाम बदल दें। अपने गुरु से कहा कि इतना कर दें। यह नाम मेरे पीछे बुरी तरह पड़ा है। यह नाम बड़ा अप्रिय है, अशुभ और अमांगलिक है। लेकिन आचार्य ने कहा, नाम तो केवल प्रज्ञप्ति के लिए है। व्यवहार-जगत में पुकारने के लिए होता है। नाम बदलने से क्या सिद्ध होगा? अरे, पाप ही बदल ले ताकि किसी की हिम्मत पापी कहने की न पड़े। मगर उसने कहा कि महाराज, वह जरा कठिन काम है, यह नाम तो बदल ही दो। __ तो गुरु ने कहा, ठीक है, तो तू ऐसा कर कि तू गांव भर में घूम-फिरकर देख ले, कौन-सा नाम तुझे प्रिय लगता है, वह तू आकर मुझे बता दे। वही तेरा रख देंगे। नहीं माना, तो गुरु ने कहा, चलो ठीक, बदल देंगे। जा तू, खोज ला। जब आग्रह ही करता है तो तेरी मर्जी। फिर भी तुझसे कहता हूं, गुरु ने कहा कि अर्थ सिद्ध तो कर्म के करने से होता है, कर्म सुधारने से होता है। पर तू नाम ही सुधारना चाहता है तो जा, गांव में खोज ले। ___ अब वह निकला गांव में। पहले ही आदमी से टकरा गया तो उसने कहा, अरे, देखते नहीं? उसने कहा, भाई, मैं अंधा हूं। उसने कहा, चलो कोई बात नहीं, तुम्हारा नाम? उन्होंने कहा, नयनसुख। वह जरा चौंका; उसने कहा, हद हो गई! नाम नयनसुख, आंख के अंधे! उसने कहा, होगा, अपने को इससे क्या लेना-देना। मगर नयनसुख नाम रखना ठीक नहीं, उसने कहा। क्योंकि अंधों का नाम नयनसुख! ___ और आगे चला तो एक अर्थी जा रही थी। उसने पूछा, भाई, कौन मर गया? उन्होंने कहा, जीवक। उसने कहा, और सुनो। जीवक तो वह जो जीये; और ये सज्जन मर गये! यह तो बड़ा बुरा हुआ। जीवक और मृत्यु का शिकार हो गया! बुद्ध के चिकित्सक का नाम जीवक था। राजाओं ने उसे यह नाम दिया था। क्योंकि वह लोगों को...उसकी औषधि में ऐसा बल था कि जैसे मरों को जिला . ले। लेकिन जीवक भी मरा। वह औषधि भी काम न आई, नाम भी काम न आया। तो वह सोचने लगा, जीवक नाम भी ठीक नहीं। तो अर्थी कसी जायेगी। फिर लोग हंसेंगे कि अरे, जीवक मर गये! जिंदगी भर हंसे क्योंकि नाम रहा पापक, मरते वक्त हंसेंगे कि हो गये जीवक! यह नहीं चलेगा। और आगे बढा तो देखा एक दीन-हीन गरीब दखियारी स्त्री को मार-पीटकर घर के बाहर निकाला जा रहा था। तो उसने पूछा देवी, तेरा नाम? तो उसने कहा, धनपाली। पापक सोचने लगा, नाम धनपाली और पैसे-पैसे को मोहताज। और आगे बढ़ा तो एक आदमी को लोगों से रास्ता पूछते पाया। तो उसने पूछा, भाई, रास्ता पीछे पछ लेना. पहले एक बात बता दो, तम्हारा नाम? तो उसने कहा. पंथक। पापक फिर सोच में पड गया कि अरे, पंथक भी पंथ पूछते हैं, पंथ भूलते हैं? पापक वापिस लौट आया। गुरु से उसने कहा कि बात खतम हो गई। नामों में क्या धरा! रास्ते पर अंधा मिला; जनम का अंधा, नाम नयनसुख। एक दुखिया मिला; जनम का दुखिया, नाम सदासुख। सब देख आया। यही ठीक है। पाप को ही बदल लूंगा। नाम को बदलने से क्या होगा? फिर भी जब तुम मुझसे दीक्षा लेते हो तो तुम्हें सुंदर नाम देता हूं। सुंदर से मेरा लगाव है। नाम 372 अष्टावक्र: महागीता भाग-5

Loading...

Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436