________________
- तुम इधर बहे कि परमात्मा ने तुम्हें छुआ। उसने छुआ कि तुम और बहे। तुम और बहे कि उसने तुम्हें और छुआ। एक वर्तुल है। धीरे-धीरे तुम ज्यादा-ज्यादा हिम्मत जुटाते जाओगे। नर्तक खोता जायेगा, नृत्य बचेगा।
अवनी पर आकाश गा रहा विरह मिलन के पास आ रहा चारों ओर विभोर प्राण झकझोर घोर में नाचें निरख घोर घन मुग्ध मोर मन
जल हिलोर में नाचे जरा हिलोर बनो।
निरख घोर घन मुग्ध मोर मन जल हिलोर में नाचे चारों ओर विभोर प्राण झकझोर घोर में नाचें निछावर इंद्रधनुष तुझ पर निछावर प्रकृति-पुरुष तुझ पर मयूरी उन्मन-उन्मन नाच मयूरी छुम छनाछन नाच मयूरी नाच, मगन-मन नाच मयूरी नाच, मगन-मन नाच गगन में सावन घन छाये न क्यों सुधि साजन की आये मयूरी आंगन-आंगन नाच
मयूरी नाच मगन-मन नाच नाचो। हृदय खोलकर नाचो। सब तरह की कृपणता छोड़कर नाचो। एक दिन तुम पाओगे: अचानक, विस्मयविमुग्ध, चकित-भाव, भरोसा न होगा कि तुम मिट गये हो, नाच चल रहा है। जिस दिन तुम पाओगे कि तुम नहीं हो और नाच चल रहा है, उसी दिन तुम पाओगे सब जो पा लेने जैसा है; सब, जिसको पाये बिना और सब पाना व्यर्थ है।
__ और तुमने पूछा है कि नाच कब घटित होता है और कब नहीं घटित होता है? जब तुम होते हो तब नहीं घटित होता है। जब तुम सम्हाल-सम्हालकर नाच रहे होते हो तब नहीं घटित होता है। बेसम्हाले नाचो। नियंत्रण तोड़कर नाचो। अराजक होकर नाचो। स्वच्छंद होकर नाचो, तभी होता है।
अगर तुम मालिक रहे और भीतर-भीतर नियंत्रण जारी रखा तो वह मनुष्य का नृत्य है; परमात्मा
370
अष्टावक्र: महागीता भाग-5