Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 382
________________ की ठीक-ठीक दशा में आ जाता था—जिसको मैं नृत्य की दशा कह रहा हूं, जब नर्तक मिट जाता है तो निजिस्की ऐसी छलांगें भरता था कि वैज्ञानिक चकित हो जाते थे। क्योंकि गुरुत्वाकर्षण के कारण वैसी छलांगें हो ही नहीं सकतीं। और साधारण अवस्था में निजिस्की भी वैसी छलांगें नहीं भर सकता था। उसने कई दफे कोशिश करके देख ली थी। अपनी तरफ से भी उसने कोशिश करके देख ली थी, हर बार हार जाता था। जब उससे किसी ने पूछा कि इसका राज क्या है ? उसने कहा, मुझसे मत पूछो। मुझे खुद ही पता नहीं। क्योंकि मैंने भी कई दफे कोशिश करके देख ली। जब यह घटती है तब घटती है। जब नहीं घटती तब मैं लाख उपाय करूं, नहीं घटती। और जब घटती है तो मैं हैरान होता हूं। कुछ क्षण को ऐसा लगता है, गुरुत्वाकर्षण का मेरे ऊपर प्रभाव नहीं रहा। मैं एक पक्षी के पंख की तरह हलका हो जाता हूं। कैसे यह होता है, मुझे पता नहीं। एक बात भर समझ में आती है कि यह उन क्षणों में होता है जब मुझे मेरा पता नहीं होता, जब मैं लापता होता हूं। जब मैं होता ही नहीं तब यह घटता है। यह तो योग का पुराना सूत्र है। यह तो तंत्र का पुराना आधार है। निजिस्की को कुछ पता नहीं वह क्या कह रहा है। अगर उसे पूरब के शास्त्रों का पता होता तो वह व्याख्या कर पाता। विज्ञान कहता है...न्यूटन ने खोजा वृक्ष के नीचे बैठे-बैठे। गिरा फल और न्यूटन को खयाल आया, हर चीज ऊपर से नीचे की तरफ गिरती है। पत्थर भी हम ऊपर की तरफ फेंकें तो नीचे आ जाता है, तो जरूर जमीन में कोई गुरुत्वाकर्षण, कोई कशिश, कोई ग्रेविटेशन होना चाहिए। जमीन खींचती चीजों को अपनी तरफ। न्यूटन ने एक बात देखी। हमने और भी एक बात देखी, जो न्यूटन ने नहीं देखी। और खयाल रखना, वही दिखाई पड़ता है जो हम देखने को तैयार होते हैं। कृष्ण ने कुछ और देखा, अष्टावक्र ने कुछ और देखा। उन्होंने यह देखा कि ऐसी कुछ घड़ियां हैं जब अहंकार नहीं होता तो आदमी ऊपर की तरफ उठने लगता है. जैसे आकाश की कोई कशिश. कोई आकर्षण है। जैसे वैज्ञानिक कहते हैं ग्रेविटेशन, गुरुत्वाकर्षण, ऐसे अंतरतम के मनीषियों ने कहा है कि प्रभु का आकर्षण। ऊर्ध्व, ऊपर की ओर से उतरती कोई ऊर्जा और खींचने लगती है। लेविटेशन या ग्रेस, प्रसाद कहें। वही घट रहा था निजिस्की को। कभी-कभी ऐसा हो जाता था, वह इतना तल्लीन...इतना तल्लीन हो जाता, ऐसा लवलीन हो जाता, ऐसा खो जाता कि फिर नर्तक न रहता, नृत्य ही बचता। कोई आयोजक न रह जाता भीतर, कोई नियंत्रक न रह जाता। कोई नृत्य करने वाला न रह जाता। वही तो अष्टावक्र तुमसे कह रहे हैं। इसी नृत्य की व्याख्या कर रहे हैं कि कर्ता को जाने दो तो प्रभु तुम्हें सम्हाल ले अभी। तुम्हीं अपने को सम्हाले हो तो प्रभु को सम्हालने का मौका ही नहीं। तुम छोड़ो। तुम कहो, तू सम्हाल। तू जान। तेरी दुनिया। तेरा यह जीवन। तूने दिया जन्म, तू देगा मौत। तू ही सम्हाल। हम तो बीच में आ गये हैं। सुनी हिकायते-हस्ती तो दर्मियां से सुनी न इब्तदा की खबर है, न इन्तहा मालूम हम तो बीच में हैं। न हमें पता है कि जन्म क्यों हुआ, न हमें पता है कि मौत क्यों होगी। न हमें प्रारंभ का कुछ पता है, और न अंत का। हम तो बीच में हैं। जिसको प्रारंभ का पता नहीं, अंत का पता 368 अष्टावक्र: महागीता भाग-5

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