Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 371
________________ लेकिन उन करनेवालों से पूछो, वे भलीभांति जानते हैं कि क्या कर रहे हैं। वे एक पागल से छुटकारा पा रहे हैं। यह कोई बात है? कोई चांटा मारे, तुम दूसरा गाल कर देना। जीसस से एक शिष्य ने पूछा कि कोई एक बार मारे तो हम माफ कर दें, लेकिन कितनी बार? जीसस ने कहा, सात बार...नहीं-नहीं, सतहत्तर बार। फिर देखा गौर से और कहा कि नहीं-नहीं, सात सौ सतहत्तर बार। . लेकिन तुम खयाल रखना, तुम इसमें से भी तरकीब निकाल लोगे पागलपन की। _ मैंने सुना है, एक ईसाई फकीर को एक आदमी ने चांटा मार दिया तो उसने दूसरा गाल सामने कर दिया। जीसस ने कहा है तो करना पड़े। उसने दूसरे गाल पर भी चांटा मार दिया। वह आदमी भी अदभुत रहा होगा मारनेवाला। वह शायद फ्रेडरिक नीत्शे का अनुयायी रहा होगा। क्योंकि फ्रेडरिक नीत्शे ने कहा है कि अगर कोई, तुम चांटा मारो, और एक गाल पर चांटा मारो और दूसरा तुम्हारे सामने कर दे तो और भी जोर से मारना, नहीं तो उसका अपमान होगा। उसने गाल दिखाया और तुमने चांटा भी न मारा? ___तो रहा होगा फ्रेडरिक नीत्शे का अनुयायी। उसने और कसकर एक चांटा मारा। सोचता था कि अब यह फिर पुराना गाल करेगा। लेकिन वह फकीर उसकी छाती पर चढ़ बैठा। वह बोला, भाई रुको। यह क्या बात है? तुम्हारे गुरु ने कहा है कि जो एक गाल पर चांटा मारे, दूसरा करना। उसने कहा कि दूसरा गाल बता दिया। तीसरा तो है ही नहीं। और गुरु ने इसके आगे कुछ भी नहीं कहा है। अब मैं मुखत्यार खुद। अब मैं तुझे बताता हूं। आदमी पागल है। अगर वह नियम का थोड़ा पालन भी करता है तो बस, एक सीमा तक। जहां तक नियम, मुर्दा नियम पालन करना है, कर लेता है। लेकिन उसके बाद असलियत प्रगट होती है। सदगुरु तुम्हें भीड़ के साथ एक नहीं करता, सदगुरु तुम्हें भीड़ से मुक्त करता है। इसलिए सदगुरु को मनोवैज्ञानिक कैसे कहें? कल तुमने सुना अष्टावक्र का सूत्र? जो ज्ञाता है, ज्ञानी है, वह लोकवत व्यवहार नहीं करता, भीड़ की तरह व्यवहार नहीं करता। उसके जीवन में न भीड़ होती है, न भेड़-चाल होती है। वह न किसी का अनयायी होता है. न किसी के पीछे चलता है। अनकरण उसकी व्यवस्था नहीं होती। वह अपने बोध से जीता है, वह स्वतंत्र होता है। अष्टावक्र कहते हैं, स्वच्छंद होता है। उसकी स्वतंत्रता परम है। अगर वह जीता है तो अपने अंतरतम से जीता है। जो उसका अंतरतम कहता है वही करता है, चाहे कोई भी कीमत और कोई भी मूल्य क्यों न चुकाना पड़े। सुकरात को जब सूली दी जाती थी, जहर पिलाया जाता था, मारने की आज्ञा दी गई थी तो मजिस्ट्रेट को भी उस पर दया आई थी और उसने कहा था, एक अगर तू वचन दे दे तो हम तुझे क्षमा कर दें। इतना तू वचन दे दे कि अब तू, जिसको तू सत्य कहता है उसकी बातचीत बंद कर देगा तो हम तुझे क्षमा कर दें। सुकरात ने कहा, फिर जीकर क्या करूंगा? जीने का अर्थ ही क्या है जहां सत्य की बात न हो, जहां सत्य की चर्चा न हो? जहां सत्य की सुगंध न हो तो जीने का अर्थ क्या है ? इससे बेहतर मर जाना है। तुम मुझे मौत की सजा दे दो। मैं रहूंगा तो मैं सत्य की बातें करूंगा ही। मैं रहूंगा तो और कोई उपाय ही नहीं है, मेरे रहने से सत्य की सुगंध निकलेगी ही। अवनी पर आकाश गा रहा 357

Loading...

Page Navigation
1 ... 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436