Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 353
________________ अस्पताल पहुंच गया। तो मुल्ला के घर लोग पहुंचे और लोगों ने कहा कि बड़े मियां, अल्लाह का शुक्र, लाख-लाख शुक्र कि आपको ज्यादा चोट नहीं लगी। और एक सज्जन ने कहा कि सच कहें तो विश्वास नहीं होता कि गधा इतना समझदार होता है। क्योंकि कहावत तो यही है कि गधा यानी गधा। मगर हद हो गई! आपका गधा कुछ विशिष्ट गधा है! कितना समझदार जानवर कि आपको लेकर अस्पताल पहुंच गया! भरोसा नहीं आता इसकी समझदारी पर। मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, क्या खाक समझदार है, गधों के अस्पताल ले गया था! गधा ले जायेगा तो गधों के अस्पताल ले जायेगा। वेटनरी अस्पताल ले गया होगा। गधा समझदारी भी करेगा तो कितनी करेगा? एक सीमा है। अज्ञानी समझदारी भी करेगा तो कितनी करेगा? एक सीमा है। उस सीमा के पार अज्ञान नहीं ले जा सकता। इससे असली सवाल, असली क्रांति, असली रूपांतरण स्थितियों का नहीं है, बोध का है। अज्ञान से मुक्त होना है, संसार से नहीं। अज्ञान से जो मुक्त हुआ, संसार से मुक्त हुआ। मूर्छा टूटी, सब टूटा। सब सपने गये-व्यक्तिगत, सामूहिक, सब सपने गये। अज्ञान बचा, तुम कहीं भी जाओ, कहीं भी जाओ-मक्का कि मदीना, काबा कि कैलाश, कुछ फर्क नहीं पड़ता। स्वभावात् यस्य नैवार्तिलोकवदव्यवहारिणः। महाहृद इवाक्षोभ्यो गतक्लेशः सुशोभते।। 'ज्ञानी स्वभाव से व्यवहार में भी...।' ध्यान रखना स्वभाव से; योजना से नहीं, आचरण से नहीं, स्वभाव से। चेष्टा से नहीं, प्रयास से साधना से नहीं, स्वभाव से स्वभावात्। जहां समझ आ गई वहां स्वभाव से क्रियायें शुरू होती हैं। एक आदमी शांत होता है चेष्टा से। गौर से देखोगे, भीतर उबलती अशांति, बाहर-बाहर थोपकर, लीप-पोतकर उसने अपने को सम्हाल लिया। ऊपर का थोपा हुआ ज्यादा काम नहीं आता। मुल्ला नसरुद्दीन पकड़ा गया। किसी की मुर्गी चुरा ली। वकील ने उसको सब समझा दिया कि क्या-क्या कहना। रटवा दिया कि देख, इससे एक शब्द इधर-उधर मत जाना। वह सब रट लिया, कंठस्थ कर लिया। वकील को कई दफे सुना भी दिया। वकील ने कहा, अब बिलकुल ठीक। अपनी पत्नी को भी सुना दिया। रात गुनगुनाता रहा, सुबह अदालत में भी गया और मुकदमा जीत भी गया, क्योंकि वकील ने ठीक-ठीक पढ़ाया था। उसने वही-वही कहा जो वकील ने पढ़ाया था। मजिस्ट्रेट ने कई तरह से पूछा, विपरीत वकील ने कई तरह से खोज-बीन की, लेकिन वह टस से मस न हुआ। सबको पता है कि मुर्गी उसने चुराई है। मजिस्ट्रेट को भी पता–छोटा गांव। और वह कई औरों की भी मुर्गियां चुरा चुका है तो सभी को, गांव को पता है कि है तो मुर्गी-चोर। लेकिन डटा रहा। आखिर मजिस्ट्रेट ने कहा कि अब हार मान गये। ठीक है तो तुम्हें मुक्त किया जाता है नसरुद्दीन। तो भी वह खड़ा रहा। मजिस्ट्रेट ने कहा, अब खड़े क्यों हो? तुम्हें मुक्त किया जाता है। तो उसने कहा, इसका क्या मतलब? मुर्गी मैं रख सकता हूं? वह चोरी भीतर है तो कहां जायेगी? वह सब पढ़ाया-लिखाया व्यर्थ हो गया। आदमी कितना ही ऊपर से आरोपण कर ले, कोई न कोई बात भीतर से फूट ही पड़ती है, खबर दे जाती है। तुम कितने ही शांत बनो ऊपर से, तुम कितने ही सज्जन बनो, तुम कितने ही सुशील बनो, तुम मृढ़ कौन, अमूढ़ कौन! 339

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