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हो जायेगा। क्योंकि संसार अज्ञान में फैलता है।
संसार के होने के लिए और कोई चीज जरूरी नहीं है, सिर्फ अज्ञान जरूरी है। जैसे स्वप्न के होने के लिए और कुछ जरूरी नहीं है, केवल निद्रा जरूरी है। सो गये कि सपना शुरू। और कोई साधन-सामग्री नहीं चाहिए, सिर्फ नींद काफी है। नींद एकमात्र जरूरत है। फिर तुम यह नहीं कहते कि कहां है मंच? कहां हैं परदे? कहां है निर्देशक? कहां है अभिनेता? कैसे हो यह खेल सपने का? नहीं, एक चीज के पूरे होने से सब पूरा हो गया-नींद आ गई तो तुम ही बन गये अभिनेता, तुम ही बन गये निर्देशक, तुम्हीं ने लिख ली कथा, तुम्हीं ने लिख लिये गीत, तुम्हीं बन गये मंच, तुम्हीं फैल गये सब चीजों में। तुम्हीं बन गये दर्शक भी। और सारा खेल रच डाला।
एक चीज जरूरी थी-नींद। __ ऐसे ही संसार के लिए भी एक चीज जरूरी है—मूर्छा, बेहोशी। बस, फिर संसार फैला। फिर किसी की भी आवश्यकता नहीं है। ___ तो तुम यह मत सोचना कि बाजार को छोड़कर अगर हिमालय चले गये तो संसार छूट जायेगा। क्योंकि संसार के होने के लिए एक ही चीज जरूरी है : मूर्छा। गुफा में बैठे-बैठे मूर्छा की झपकी आ गई, झोंका आ गया, संसार फैल गया। वहीं तुम विवाह रचा लोगे, वहीं बच्चे पैदा हो जायेंगे।
पुरानी कथा है। एक युवा संन्यासी ने अपने गुरु को पूछा, यह संसार है क्या? गुरु ने कहा, तू ऐसा कर, तू आज गांव में जा, फला-फलां द्वार पर भिक्षा मांग लेना। लौटकर जब आयेगा तब संसार क्या है, बता दूंगा। युवक तो भागा। ऐसी शुभ घड़ी आ गई कि गुरु ने कहा कि संसार क्या है, बता दूंगा। तू भिक्षा मांग ला।
उसने जाकर द्वार पर दस्तक दी। एक सुंदर युवती ने द्वार खोला। अति सुंदर युवती थी। युवक ने ऐसी सुंदर स्त्री कभी देखी न थी। उसका मन मोह गया। वह यह तो भूल ही गया कि गुरु के लिए भिक्षा मांगने आया था, गुरु भूखे बैठे होंगे। उसने तो युवती से विवाह का आग्रह कर लिया। उन दिनों ब्राह्मण किसी से विवाह का आग्रह करे तो कोई मना कर नहीं सकता था। युवती ने कहा, मेरे पिता आते होंगे। वे खेत पर काम करने गये हैं। हो सकेगा। घर में आओ, विश्राम करो।
वह घर में आ गया। वह विश्राम करने लगा। पिता आ गये, विवाह हो गया। वह गुरु की तो बात ही भूल गया। वह भिक्षा मांगने आया था, यह तो बात ही भूल गया। उसके बच्चे हो गये, तीन बच्चे हो गये। फिर गांव में बाढ़ आई, नदी पूर चढ़ी। सारा गांव डूबने लगा। वह भी अपने तीन बच्चों को और अपनी पत्नी को लेकर भागने की कोशिश कर रहा है। और नदी विकराल है। और नदी किसी को छोड़ेगी नहीं। सब डूब गये हैं, वह किसी तरह बचने की कोशिश कर रहा है। एक बच्चे को बचाने की कोशिश में दो बच्चे बह गये। इधर हाथ छूटा, दो बह गये। पत्नी को बचाने में बच्चा भी बह गया। फिर अपने को बचाने की ही पड़ी तो पत्नी भी बह गई। किसी तरह खुद बच गया, किसी तरह लग गया किनारे, लेकिन इस बुरी तरह थक गया कि गिर पड़ा। बेहोश हो गया। __ जब आंख खुली तो गुरु सामने खड़े थे। गुरु ने कहा, देखा संसार क्या होता है? तब उसे याद आया कि वर्षों हो गये, तब मैं भिक्षा मांगने निकला था। गुरु ने कहा, कुछ भी नहीं हुआ है सिर्फ तेरी झपकी लग गई थी। जरा आंख खोलकर देख। वह भिक्षा मांगने भी नहीं गया था। सिर्फ झपकी लग
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5