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नहीं। इस क्षण को जीयो।
लेकिन तुम मेरी बातें भी सुनते हो तो भी मेरी बातें तुम्हारे भीतर जाकर नई अतृप्ति का कारण बन जाती हैं। तुम्हें और जोर से दौड़ पैदा होती है, और ज्वर चढ़ता है कि हे प्रभु! जल्दी मिलना हो।
नहीं, मिलना होगा। मिलन अभी हो सकता है, यह 'जल्दी' जानी चाहिए। और ज्यादा का भाव जाना चाहिए। जिस दिन तुम्हारा और ज्यादा का भाव चला जायेगा उसी दिन और ज्यादा मिलता है, उसके पहले नहीं। . और तुम मंजिल की बहुत फिक्र मत करो। यात्रा बड़ी सुखद है। नहीं देखते? नहीं अनुभव में आता? यात्रा बड़ी सुखद है। ध्यान अपने में सुखद है, तुम समाधि की चिंता छोड़ो। प्रेम अपने में सुखद है, तुम और क्या चाहते हो?
रहरवे-राहे-मुहब्बत रह न जाना राह में
लज्जते-सहरानवर्दी दूरि-ए-मंजिल में है हे प्रेममार्ग के पथिक! राह में रह मत जाना।
लज्जते-सहरानवर्दी दूरि-ए-मंजिल में है वह जो दूर की मंजिल है उसमें थोड़े ही रस है। वह जो दूर की मंजिल की तरफ जानेवाला मार्ग है, वह जो जंगल में घूमना है, उसमें ही आनंद है। लज्जते-सहरानवर्दी-वह जो जंगल में घूमने का आनंद है। दूर की मंजिल तो सिर्फ बहाना है जंगल में घूमने के लिए। . समाधि तो बहाना है ध्यान के लिए। तुम उसको लक्ष्य मत बना लेना। वह तो सिर्फ खंटी है ध्यान को टांगने के लिए। तुम कहीं ऐसा मत सोचने लगना कि समाधि मिलेगी तब हम आनंदित होंगे। अभी तो ध्यान ही कर रहे हैं। अभी तो ध्यान ही चल रहा है। तो ध्यान में भी रस न आयेगा। और ध्यान में रस न आया तो समाधि कभी पकेगी नहीं। तुम ध्यान को इस तरह लेना, जैसे कहीं जाना नहीं है।
तुम मुझे सुन रहे हो, तुम दो तरह से सुन सकते हो। या तो इस तरह कि मन में नोट कर रहे हो कि काम-काम की बातें नोट कर लें, जिनका अपन उपयोग करेंगे और जिनके द्वारा जल्दी से जल्दी परमात्मा को पा लेंगे। एक तो इस तरह का सुनना है। यह दूकानदार का सुनना है। यह गणित का सुनना है। और जिंदगी में गणित काम नहीं आते। ____ मैं अंग्रेजी स्कूल में भर्ती हुआ था और गणित के हमारे शिक्षक थे, वे बड़े पक्के गणित के आदमी थे। गणितं ही उनकी दृष्टि थी। मेरी उनसे अक्सर झंझट हो जाती थी। और अक्सर मुझे उनकी कक्षा में तो क्लास के बाहर ही खड़ा रहना पड़ता था। क्योंकि जैसे ही मैं खड़ा होता, वे कहते तुम बाहर जाओ। तुम गड़बड़ न करो। नहीं तो तुम सब समय खराब कर दोगे। तुम बाहर...। तुम जब शांत बैठना हो तो भीतर आ जाना।
वे नाराज मुझसे हुए एक बात से कि उन्होंने कहा कि एक मकान को दस मजदूर तीन महीने में बना पाते हैं तो बीस मजदूर कितने दिन में बना पायेंगे?
मैंने उनको कहा कि इसके पहले कि आप सवाल पूछे, मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूं। सवाल से जाहिर है कि आप सोचते हैं, बीस मजदूर डेढ़ महीने में बना पायेंगे तो चालीस मजदूर और आधे दिन में, अस्सी मजदूर और आधे दिन में, एक सौ साठ मजदूर और आधे दिन में। इसका तो
सदगुरुओं के अनूठे ढंग
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