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की तरह तुमने पीया था वह तुम्हारे भीतर धार की तरह बहने लगेगा।
नहीं, तुम रुक न सकोगे। बदलना ही होगा। बदलाहट शुरू ही हो गई है। और कारण बदलाहट का कि सत्य अगर है तो क्रांति उसके पास घटती ही है, रुक नहीं सकती। यह कुछ तुम्हारे करने न करने की बहुत बात नहीं है।
श्रवणमात्रेण! अष्टावक्र कहते हैं, मात्र सुनकर भी क्रांति घट जाती है। श्रवणमात्रेण!
तुम सिर्फ सुनते रहो। तुम सिर्फ मुझे आने दो भीतर। तुम बाधा न डालो। बस तुम्हारे हृदय तक यह धार पहुंचती रहे, तुम्हारे सब पाषाण पिघल जायेंगे और बह जायेंगे। क्योंकि जो मैं कह रहा हूं उसके सत्य को तुम कितने दिन तक झुठलाओगे! जो मैं तुमसे कह रहा हूं, तुम आज सिर्फ मजे की तरह सुन लोगे लेकिन उसके सत्य को कितने दिन तक झुठलाओगे। सुनते-सुनते उसका सत्य तुम्हारी पकड़ में आना शुरू हो जायेगा। शायद तुम्हारे अनजाने में ही सत्य तुम्हारी पहचान में आना शुरू हो जाये।
और फिर जो मैं तुमसे कह रहा हूं उसकी छाया तुम्हें जीवन में भी दिखाई पड़ेगी, जगह-जगह दिखाई पड़ेगी। अगर मैंने तुमसे आज कहा कि मंदिरों में क्या रखा है, और तुमने सुन लिया। तुम भूल भी गये। लेकिन अचानक एक दिन तुम पाओगे, मंदिर के पास से गुजरते हुए तुम्हें याद आती है कि मंदिरों में क्या रखा है। कि आज मैंने तुमसे कहा कि शास्त्रों में तो कोरे शब्द हैं। किसी दिन गीता को उलटते, बाइबिल को पलटते अचानक तुम्हें याद आयेगी कि शास्त्रों में तो केवल शब्द हैं।
और यह याद प्रगाढ़ हो जायेगी। क्योंकि शब्द ही हैं। इस बात की सचाई को तुम ज्यादा दिन तक छोड़ न पाओगे। आज तुमने सुना कि तुम्हारे मंदिर-मस्जिदों में बैठे हुये संन्यासी कोरे हैं। कहीं कुछ हुआ नहीं। किसी दिन अपने मुनि को, अपने स्वामी को सिर झुकाते वक्त तुम्हें उसकी आंखें दिखाई पड़ जायेंगी। उसका खाली चेहरा, उसके आसपास छाई हुई मूढ़ता, मूर्छा! तुम बच न सकोगे। सत्य याद आ जायेगा।
श्रवणमात्रेण!
सुनते रहो। और फिर जीवन की हर घटना तुम्हें याद दिलायेगी। अगर मैंने कहा कि यह जो दिखाई पड़ रहा है, सब सपना है। कितने दिन तक तुम इससे बचोगे? यह सपना है। यह तुम्हें बार-बार अनेक-अनेक मौकों पर कांटे की तरह चुभने लगेगा। और मैंने तुमसे कहा, यह जिंदगी तो मौत में जा रही है। यह जिंदगी तो मौत में बदल रही है। यह जिंदगी तो जायेगी। यह जिंदगी तो सिर्फ मरती है और कुछ भी नहीं होता।
तुम कब तक बचोगे? राह पर किसी अर्थी को गुजरते देखकर तुम्हें लगेगा, तुम बंधे अर्थी में चले जा रहे। ये बातें सिर्फ बातें नहीं हैं। ये बातें सत्य की अभिव्यक्तियां हैं। बात को जाने दो भीतर। उसके साथ थोड़ा-सा सत्य भी सरक गया। बात के पीछे-पीछे सरक गया-श्रवणमात्रेण!
और रोज-रोज तुम्हें मौके आयेंगे। प्रतिपल तुम्हें मौके आयेंगे जब इन बातों की सचाई प्रगट होने लगेगी। और प्रमाण जीवन से जुटने लगेंगे। मैं तो जो कह रहा हूं वे तो केवल मौलिक सिद्धांत हैं।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5