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लेकिन नाचने का मतलब यह मत समझना कि तुम्हारा शरीर नाचे तो ही। वह परम दशा गुनगुनाती हुई है। भीतर नाच ही नाच है। मीरा बाहर भी नाच रही है, बुद्ध भीतर ही नाच रहे हैं, पर नाच चल रहा है। कृष्ण बांसुरी बजाकर नाच रहे, महावीर बिना बांसुरी, बिना मोरपंख के नाच रहे। कृष्ण का नृत्य तुम्हारी चर्म आंखों से भी देखा जा सकता है, महावीर का नृत्य देखना हो तो भीतर की आंखें खोलनी जरूरी हैं। वहां तुम्हें महावीर नाचते हुए दिखाई पड़ेंगे। ___वह परम दशा उत्सव की है, महोत्सव की है। परम प्रेम, परम अमृत, परम आनंद की है; सच्चिदानंद रूप है, इतना ही अर्थ है।
यह परम दशा का इंगित है। यह परम दशा की निर्वचना है। इसका मार्ग से कोई भी संबंध नहीं है। कोई किसी मार्ग से आये, कैसी ही विधियों का उपाय करके आये—पतंजलि से गुजरकर आये कि अष्टावक्र से गुजरकर आये, लेकिन पहुंच गया जो, सिद्ध जो हुआ, वह कहेगाः रसो वै सः, वह रसरूप है।
छठवां प्रश्नः
यही है जिंदगी मेरी . यही है बंदगी मेरी कि तेरा नाम आया और गर्दन झुक गई मेरी ीक है, शुभ है। जैसा कहा है इस पद
| में, वैसा ही प्रभु करे तुम्हारे भीतर भी हो। यह पद ही न रहे। पद लिखने की मौज में ही न लिख दिया हो। सुंदर है, सुंदर को कहने का मन होता है। लेकिन स्मरण रखना, सुंदर को कहना तो सुखद है ही, सुंदर हो जाना महासुखद है। रसो वै सः। ऐसा हो जाये'यही है जिंदगी मेरी यही है बंदगी मेरी कि तेरा नाम आया
और गर्दन झुक गई मेरी' झुकना आ जाये, तो सब आ गया। झुकना सीख लिया तो कुछ और सीखने को न बचा।
राम, तुम्हारा नाम कंठ में रहे
दिल का देवालय साफ करो
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