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ठीक बात नहीं की । कर ही न सकता था । मूल भूल मौजूद थी, उसी में पत्ते लगते थे। जबसे मैं न रहा, तबसे कोई भूल नहीं हुई। अब हो नहीं सकती । अब करना भी चाहूं तो नहीं हो सकती। पहले ठीक करना भी चाहा था तो गलत हुआ था। अब गलत भी करना चाहूं तो भी ठीक ही होता है। अब गलत होने का उपाय ही न रहा । मूल कट गया। जड़ कट गई।
जड़ पर ही ध्यान देना, जड़ को ही काटना है।
चौथा प्रश्न : बड़ा प्रसिद्ध पद है कबीर का, 'प्रेमगली अति सांकरी तामें दो न समाय ।' लेकिन प्रेमगली क्या इतनी चौड़ी नहीं है कि 'तामें सर्व समाय' ? कृपया समझाएं।
नों का एक ही अर्थ है। जहां दो न बचे, वहीं सर्व बचता है। एक और
इसको
सर्व एक ही अर्थ रखते हैं। जैसे ही एक बचा, वैसे ही सर्व बचा।
तो कबीर का यह कहना कि 'प्रेमगली अति सांकरी तामें दो न समाय, ' वही अर्थ रखता ऐसा भी कह सकते हैं कि प्रेम की गली बहुत विशाल है, तामें सर्व समाय ।
लेकिन कबीर ने वैसा कहा नहीं, कारण है। क्योंकि तुम्हारे लिए दूसरा वक्तव्य किसी मतलब का नहीं है। तुम्हारे लिए तो पहला वक्तव्य ही मतलब का है। तुम अभी दो में हो और एक को गिराना है। कबीर जैसे सत्पुरुष जो बोलते हैं, अकारण नहीं बोलते। जिनसे बोलते हैं, उनके लिए कुछ सूत्र है, कुछ इशारा है। कबीर ने जिनसे कहा है, वे दो में खड़े हैं। अभी उनसे सर्व की बात करनी फिजूल है। अभी तो एक नहीं हुआ तो सर्व का तो पता ही न चलेगा। अभी तो इतना ही कहना ठीक है कि अभी दो हो और प्रेम की गली बड़ी संकरी है, ये 'दो - भाव' छोड़ दो। एक को गिरा दो, एक ही बच रहे। जब एक ही बच रहेगा, तब तुम्हें स्वयं ही पता चलेगा कि यह तो सर्व हो गया। यह तो खोना न हुआ, पाना हो गया। जब बूंद सागर में गिरती है, तो पहले तो यही सोचती होगी कि मिटी, गई, खोयी गिर कर पाती है कि मैं तो सागर हो गई। पहले लगता था खोना, अब लगता है पाना ।
तो दूसरा पद कबीर ने नहीं कहा, जानकर और दोनों में विरोध नहीं है। दोनों एक ही की तरफ
इशारा हैं।
दिल का देवालय साफ करो
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