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नहीं। तुम अनागामिन हो गये। अब तुम दुबारा न आओगे। अब तुम प्रभु में समाहित हो गये।
लेकिन मैं जानता हूं, पूछनेवाले का कारण कुछ और है। संन्यास लेने की हिम्मत नहीं, तो अपने को समझा रहे हैं कि यह संन्यास तो पलायन है। कहते हैं, क्या संन्यास कायरता नहीं? सच बात उल्टी है-संन्यास लेने की हिम्मत नहीं। तुम जरा मेरा संन्यास लेकर देखो, तब तुम्हें पता चलेगा कि कायरता लेने में थी कि न लेने में थी। तुम जरा लेकर देखो। जरा गैरिक वस्त्र पहनकर, यह माला पहनकर बाजार जाकर देखो, घर जाकर देखो, परिवार-प्रियजन के पास जाकर देखो, तब तुम्हें पता चलेगा कायरता कहां थी। सारी दुनिया विरोध में खड़ी मालूम होगी। हां, अगर मैं तुमसे कहता पहाड़ पर भाग जाओ, तो कायरता थी। मैं तो तुमसे कहता हूं, भागना ही मत। तुम तो जमकर खड़े रहना संसार में।
एक मित्र आये। कहने लगे संन्यास तो लेता हूं, लेकिन एक झंझट है कि मैं शराब पीता हूं। मैंने कहा, मजे से पीयो। संन्यास तो लो, फिर देखेंगे। वे बहुत चौंके। उन्होंने कहा, क्या आप कहते हैं कि शराब भी पीऊं! मैंने कहा, वह तुम्हारी मर्जी। मुझे इन छोटी बातों में लेना-देना नहीं, क्या तुम पीते, क्या नहीं पीते! मैं कोई जैन-मुनि थोड़े ही हूं कि इन सबका हिंसाब रखू कि शराब छानकर पीते कि बिना छनी पीते। तुम पीयो; तुम पीते हो, तुम्हारी जिम्मेवारी। मैं तुम्हें ध्यान देता हूं, संन्यास देता हूं, फिर देखेंगे।
कोई पंद्रह दिन बाद वे आये और कहने लगे कि फांसी लगा दी! अब शराबघर की तरफ जाते डर लगता है। संन्यास लेने के दूसरे दिन गया, एक आदमी पैर पर गिर पड़ा और कहने लगा स्वामी जी, आप यहां कैसे! मैंने कहा, अब तुम्हारी मर्जी! हिम्मत हो तो जाओ। नहीं, वे कहने लगे, अब न हो सकेगा। उस आदमी ने इतने भाव से कहा कि स्वामी जी, आप यहां कैसे! शायद उसने सोचा कि कोई भूल-भटक गये हैं स्वामी जी। यह मधुशाला है, यह कोई मंदिर नहीं है, आप कहां आ गये! .
तुम पूछते हो, संन्यास कायरता! तुम जरा लेकर देखो। नहीं, उस आदमी की शराब गई। संन्यास लेने के बाद तुम्हें पता चलना शुरू होगा।
एक युवक ने संन्यास लिया, कल्याण में रहते हैं। पंद्रह दिन बाद अपनी पत्नी को लेकर आ गये कि इसको भी संन्यास दे दें। मैंने कहा, बात क्या? कहने लगे, झंझट खड़ी होती है। ट्रेन में लोगों ने मुझे पकड़ लिया कि तुम किसकी पत्नी लेकर भागे जा रहे हो? संन्यासी होकर, यह स्त्री किसकी है? इसको भी संन्यास दे दें, नहीं तो यह तो किसी दिन झंझट होगी! पांच-सात दिन बाद अपने छोटे बेटे को लेकर आ गये, इसको भी संन्यास दे दें। मैंने कहा, हुआ क्या? बोले कि हम दोनों को लोगों ने रोक लिया ट्रेन में, कहा यह किसका बच्चा उठा लाये? अपना बच्चा! मगर अब यह संन्यासी का बच्चा कैसे!
संन्यास की एक धारणा थी पुरानी, उसमें भगोड़ापन था। मैं तुमसे कह रहा हूं, पति भी रहना, पत्नी भी रहना, मां भी रहना, पिता भी रहना। मैं तो तुम्हें एक संघर्ष दे रहा हूं, एक चुनौती दे रहा हूं। तुम्हारी चुनौतियां बढ़ जायेंगी, घटेंगी नहीं। तुम्हारा संघर्ष गहरा हो जायेगा। यह पलायन नहीं है। __ लेकिन तुम बचना चाहते हो। बचना चाहते हो बचो, लेकिन झूठे शब्दों की आड़ मत लो। कायर तुम हो। और चाह रहे हो अपने आपको समझा लेना कि संन्यास कायरता है। सो अपने मन में तुम
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5