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मान
रखो
कि तुम बड़े बहादुर हो । बहादुर हो तो डुबकी लो, डरो मत! संसारी रहकर तो देख लिया है, अब साथ ही संन्यासी रहकर संसार में रहकर देख लो, तब तुम्हें पता चलेगा कि संघर्ष किसका
बड़ा
है, चुनौती किसकी महान है !
और देखना, तुम कहते हो जब पक जायेंगे... । मैं तुम्हें कहे देता हूं कि पकने के पहले मौत आ जायेगी। क्योंकि मरते दम तक आदमी नहीं सोचता कि मैं पक गया। मरते दम तक वासनाएं पीछा करती हैं। मरते दम तक भी सपने जकड़े रहते हैं। मरते दम तक योजनायें पीछे पड़ी रहती हैं। मरते दम तक खयाल रहता है कुछ करके दिखा दें, कुछ हो जायें, अभी कुछ देर और बाकी है। बिखर गये सब मोती मेरे ! क्रूर समय ने असमय तोड़ी सांसों की वह रेशम डोरी जिसमें रोज पिरोये मोती आशाओं ने सांझ सवेरे बिखर गये सब मोती मेरे !
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आयी तेज हवा मतवाली तोड़ गई वह कोमल डाली जिस पर हर पंछी ने अपने बना लिये थे रैन बसेरे बिखर गये सब मोती मेरे !
काली रात लगी गहराने बुझने दीप लगा सिरहाने घिर आये आंखों के आगे चारों ओर अपार अंधेरे बिखर गये सब मोती मेरे !
लेकिन तब समय न बचेगा. - जब मोतियों की माला टूटकर बिखरेगी, जब सपनों की माला टूटकर बिखरेगी और जब चारों तरफ अंधेरा घिरने लगेगा !
एक महिला संन्यास लेना चाहती थी। कई बार आयी, कई बार पूछा, कई बार समझा, फिर कहती है कि कल आऊंगी। एक दिन खबर आयी — और उसके एक ही दिन पहले वह कह कर गई थी कि कल आऊंगी. - कि वह कार में 'एक्सीडेंट' हो गया है। वह कोई छः घंटे सात घंटे बेहोश रही, फिर उसे होश आया। होश आया तो उसने पहली बात कही कि दौड़ो, अपने लड़के से कहा कि दौड़ो, मुझे संन्यास लेना है, और मैं कितने दिन से टाल रही उसकी उम्र थी कोई सत्तर वर्ष - कितने दिन से टाल रही और आज तो, कल मैं कहकर आयी थी कि आज संन्यास ले लूंगी, आज मौत आ गई, अब भागो! लेकिन लड़का जब तक मेरे पास आया, उसकी सांस टूट चुकी थी ।
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दिल का देवालय साफ करो
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