________________
लेकिन असल में तुम बात कुछ और कह रहे हो। तुम उपदेश लेना नहीं चाहते। तुम्हें उपदेश जहर जैसा मालूम पड़ रहा है। तुम्हें लग रहा है कि यह बात किसी से लेनी पड़े, यह तुम्हारे अहंकार को बड़ा कष्ट देती मालूम पड़ रही है। मत लो, तुम्हारी मर्जी।
देने में मेरी आतुरता नहीं है। कह दिया, मेरा कर्तव्य पूरा हो गया। परमात्मा मुझसे न कह सकेगा कि जो तुम्हें मिला था, वह तुमने कहा नहीं। वह जिम्मेवारी मैंने पूरी कर दी। तुमने नहीं लिया, वह तुम्हारे और तुम्हारे परमात्मा के बीच का निपटारा है। उससे मेरा कुछ लेना-देना नहीं। तुम्हें न लेना हो उपदेश, न लो। यह कोई आदेश नहीं है कि तुम्हें लेना ही पड़ेगा। लेकिन कृपा करके यह तो मत कहो कि मैं उपदेश क्यों दूं? तुम मुझे तो छोड़ो! मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं-आदेश नहीं दे रहा-तुम इतनी दया मुझ पर भी करो।
तुम पूछते हो, 'समर्पण है तो विरोध की व्याख्या क्यों?'
बिना विरोध की व्याख्या समझे तुम समर्पण समझोगे कैसे? कोई तुमसे पूछे कि प्रकाश क्या है, तो तुम यही कहोगे न कि अंधेरा नहीं है! और क्या कहोगे? कोई तुमसे पूछे जीवन क्या है, तो तुम यही कहोगे न कि मृत्यु नहीं है! कोई तुमसे पूछे कि ध्यान क्या है, तो यही लिखा है न सारे शास्त्रों में कि विचार नहीं है। बिना विपरीत के व्याख्या नहीं होती। समर्पण की व्याख्या करनी हो तो विरोध की व्याख्या करनी पड़ती है। विरोध समझ में आ जाये, विरोध गिर जाये, समझ में आकर, तो जो शेष रह जाता है वही समर्पण है। इसलिए व्याख्या है। सत्य को जानने के लिए असत्य को भी समझना पड़ता है। ठीक को पहचानने के लिए गैर-ठीक को पहचानना पड़ता है। सही रास्ते पर जाने के लिए गलत-गलत रास्ते कौन-से हैं, वे भी पहचान लेने पड़ते हैं। नहीं तो वहीं भटकते रहोगे। - एडीसन एक प्रयोग कर रहा था। सात सौ बार असफल हो गया प्रयोग करने में। तीन साल लग गये। उसके शिष्य, उसके अनुयायी, उसके साथी सब परेशान हो गये कि यह तो पागलपन हुआ जा रहा है। सात सौ बार असफल हो गया है, लेकिन यह थकता नहीं। और रोज सुबह वह ताजा चला आये-प्रसन्न, उत्साह से भरा हुआ, फिर प्रयोग शुरू।
• आखिर उसके साथियों ने एक दिन उसे घेर लिया और कहा कि बहुत होता है, एक सीमा होती है. हर चीज की सीमा होती है. अब ठहरें। सात सौ बार हम हार चके हैं, अब यह कब तक चलेगा? कछ और नहीं करना है? जिंदगी भर यही करते रहना है? एडीसन ने कहा, पागलो. सात सौ बार हार चके इसका मतलब है, सात सौ गलत रास्तों से हमारी पहचान हो गई, अब ठीक रास्ता करीब ही आता होगा। कितने होंगे गलत रास्ते? अगर हजार गलत रास्ते हैं, तो सात सौ तो हम पहचान चुके कि गलत हैं, अब तीन सौ ही बचे। दो सौ निन्यानबे और पहचान लेने हैं कि गलत हैं, फिर मिल जायेगा ठीक। हम ठीक के रोज करीब हो रहे हैं, तुम उदास क्यों हो! क्योंकि गलत को जाने बिना ठीक को जानोगे कैसे?
अपने घर आने के लिए बहुत दूसरों के घरों पर दस्तक देनी पड़ती है। सदगुरु को पाने के पहले न मालूम कितने असदगुरुओं के पास भटकना पड़ता है। स्वाभाविक है। इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं है। गलत भी कुछ नहीं है। ठीक नियम के अनुसार है। टटोलना है अंधेरे में।
तो मैं तुम्हें विरोध की भी व्याख्या देता हूं, क्या गलत है वह भी कहता हूं; क्योंकि तुमसे कहना
दिल का देवालय साफ करो
251
-