________________
होशपूर्वक देखना।
बुद्ध के जीवन में एक उल्लेख है। एक भिक्षु यात्रा को जा रहा है। उस भिक्षु ने बुद्ध को कहा कि प्रभु, मार्ग के लिए कोई निर्देश हों तो मुझे दे दें; क्योंकि महीनों दूर रहूंगा, पूछ भी न सकूँगा। तो बुद्ध ने कहा, एक काम करना। रास्ते पर स्त्री मिले तो देखना मत, आंख नीचे करके निकल जाना। वह भिक्षु बोला, जैसी आज्ञा।
लेकिन बुद्ध का दूसरा शिष्य आनंद बैठा था। और आनंद की बड़ी कृपा है मनुष्य जाति पर। क्योंकि उसने बड़े अनूठे, वक्त-बेवक्त, बेबूझ, कभी असंगत-अनर्गल प्रश्न भी पूछे। उसने कहा, प्रभु रुकें। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि देखना पड़े या देखकर ही तो पता चलेगा कि स्त्री है, फिर आंख झुकानी। पहले से तो पता कैसे चल जायेगा? आखिर...पहले तो देख ही लेंगे कि स्त्री
आ रही है। अब तो देख ही चुके। आप कहते हैं, स्त्री को देखकर आंख नीचे झुका लेना, मगर देख तो चुके ही, उस हालत में क्या करना? ___तो बुद्ध ने कहा, अगर देख चुके हो, कोई हर्ज नहीं, छूना मत। आनंद ने कहा, और कभी ऐसा भी हो सकता है कि छूना पड़े। अब एक स्त्री गिर गई हो रास्ते पर और हमारे सिवाय कोई नहीं। उसे उठायें, न उठायें? आप कहते हैं, करुणा, दया-क्या हुआ करुणा-दया का? तो बुद्ध ने कहा, ठीक, ऐसी कोई घड़ी आ जाये तो छू लेना, मगर होश रखना। . बुद्ध ने कहा, असली बात तो होश रखना है। यह भिक्षु कमजोर है, इससे मैंने कहा, देखना मत। थोड़ा हिम्मतवर आदमी हो तो उससे मैं यह भी नहीं कहता कि देखना मत। और थोड़ा हिम्मतवर हो, उससे मैं यह भी नहीं कहता कि छूना मत। और थोड़ा हिम्मतवर हो तो उसे मैं कुछ भी आज्ञा नहीं देता। लेकिन एक ही बात-होश रखना।
ऐसा हुआ, एक बार वर्षाकाल शुरू होने के पहले एक भिक्षु राह से गुजर रहा था और एक वेश्या ने उससे निवेदन किया कि इस वर्षाकाल मेरे घर रुक जायें। उस भिक्षु ने कहा, मैं अपने गुरु को पूछ लूं। उसने यह भी न कहा कि तू वेश्या है। उसने यह भी न कहा कि तेरे घर और मेरा रुकना कैसे बन सकता है ? उसने कुछ भी न कहा। उसने कहा, मेरे गुरु को मैं पूछ आऊं। अगर आज्ञा हुई तो रुक जाऊंगा।
वह गया और उसने भरी सभा में खड़े होकर बुद्ध से पूछा कि एक वेश्या राह पर मिल गई और कहने लगी कि इस वर्षाकाल मेरे घर रुक जायें। आपसे पूछता हूं। जैसी आज्ञा! बुद्ध ने कहा, रुक जाओ। बड़ा तहलका मच गया। बड़े भिक्षु नाराज हो गये। यह तो कई की इच्छा थी। इनमें से तो कई आतुर थे कि ऐसा कुछ घटे। वे तो खड़े हो गये। उन्होंने कहा, यह बात गलत है। सदा तो आप कहते हैं, देखना नहीं, छूना नहीं और वेश्या के घर में रुकने की आज्ञा दे रहे हैं?
बुद्ध ने कहा, यह भिक्षु ऐसा है कि अगर वेश्या के घर में रुकेगा तो वेश्या को डरना चाहिए; इस भिक्षु को डरने का कोई कारण नहीं है। खैर, चार महीने बाद तय होगी बात, अभी तो रुक।
वह भिक्षु रुक गया। रोज-रोज खबरें लाने लगे दूसरे भिक्षु कि सब गड़बड़ हो रहा है। रात सुनते हैं, दो बजे रात तक वेश्या नाचती थी, वह बैठकर देखता रहा। कि सुनते हैं कि वह खान-पान भी सब अस्तव्यस्त हो गया है। कि सुनते हैं, एक ही कमरे में सो रहा है। ऐसा रोज-रोज बुद्ध सुनते,
स्वातंत्र्यात परमं पदम्
2311