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क्या भरोसा ? परमात्मा पर छोड़ दो।
फिर जो अभी अच्छा लगता है, क्षण भर बाद बुरा हो सकता है। क्योंकि जगत की कथा तो चलती चली जाती है। इसमें हर चीज बदलती रहती है। तुम एक कुएं के पास से निकलते थे, कोई गिर पड़ा, तुमने उसको निकालकर बचा लिया। वह आदमी गया गांव में, किसी की हत्या कर दी । अब तुम जिम्मेवार हो या नहीं ? न तुम बचाते, न यह हत्या होती । अब यह बड़ी मुश्किल हो गई। तुमने हत्या
लिए बचाया भी नहीं । तुम तो बड़ी दया कर रहे थे।
इसलिए तेरापंथी जैन कहते हैं, बचाना ही मत । वह जो कुएं में पड़ा है, पड़ा रहने दो, तुम अपने रास्ते जाओ। क्योंकि बचाया और कहीं उसने जाकर किसी की हत्या कर दी। फिर ? कोई प्यासा मर रहा है और तुम्हारे पास पानी है तो तेरापंथी कहते हैं, पानी भी मत पिलाना। क्योंकि क्या पता ? पानी पिलाकर ठीक हो जाये, रात किसी के घर डाका डाल दे। फिर कौन जिम्मेवार ? इसलिए तुम उदासीन रहना। तुम अपने चले जाना अपने रास्ते पर । वह अपना कर्म भोग रहा है, तुम अपना कर्म भोगो। बीच में बाधा डालो मत।
लेकिन यह तो बड़ी कठोरता हो जायेगी। और यह तो आदमियत से बड़ा नीचे गिरना हो जायेगा । तो फिर क्या उपाय है ? अष्टावक्र का सुझाव ज्यादा कारगर है।
अष्टावक्र कहते हैं, जो जिस क्षण में प्रभु करवा ले वह कर लो। तुम कर्ता मत बनो। तुम कह दो, निमित्त मात्र हूं। योजना भी मत रखो कि मैं यही करूंगा और यह न करूंगा। यह ठीक, यह गलत, ऐसा हिसाब भी मत रखो। यह जगत इतना रहस्यपूर्ण है कि क्या गलत, क्या ठीक ! और यह कथा इतनी लंबी है कि जो अभी गलत मालूम होता है, क्षण भर बाद ठीक हो जा सकता है। और जो क्षण भर पहले ठीक मालूम होता था, क्षण भर बाद गलत हो सकता है। कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए इस अनजान विराट लीला में तुम निमित्त मात्र रहो ।
'धीरपुरुष जब जो कुछ शुभ अथवा अशुभ करने को आ पड़ता है उसे सहजता के साथ करता है...।'
वह उसमें अड़चन नहीं लेता। वह निमित्त बन जाता है। वह कहता है, ठीक ।
'क्योंकि उसका व्यवहार बालवत है!'
यदा यत्कर्तुमायाति तदा तत्कुरुते ऋजुः ।
सरलता से, ऋजुता से, सहजता से, बिना कोई बोझ लिये - कि शुभ कर रहा हूं, इसकी अकड़ लिये, कि अशुभ कर रहा हूं, इसकी अकड़ लिये, कि पुण्य किया कि पाप किया- किसी तरह का अहंकार बिना लिये और किसी तरह का पश्चात्ताप बिना लिये। प्रभु ने जो करवाया, किया। जो हुआ, हुआ। न पीछे लौटकर देखता है, न आगे की योजना करता है। क्षण में जो हो जाता है, हो जाता है। यदा यत्कर्तुमायाति तदा तत्कुरुते ऋजुः।
शुभं वाप्यशुभं वापि तस्य चेष्टा हि बालवत् । ।
और छोटे बच्चे की तरह सरल। छोटे बच्चे में देखा ? क्षण-क्षण जीता है। वही उसका सौंदर्य है। क्षण में तुमसे नाराज हो गया और कहने लगा, अब तुम्हारा चेहरा भी कभी न देखेंगे। कट्टी हो गई। बात खतम हो गई। और क्षण भर बाद तुम्हारी गोदी में आ बैठा और हंस रहा है। और बात ही
स्वातंत्र्यात् परमं पदम्
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