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खूब हिलाई थी, मैंने तो बत्ती खूब हिलाई थी। तुम डटे रहे अपनी बात पर । सिग्नल -मैन बोला, नहीं साहब। मैं जरा भी नहीं घबड़ाया यह बात तो ठीक है। हां, अगर वकील ने पूछा होता कि बत्ती जल रही थी या नहीं? तब उस समय जवाब देना मेरे लिए कठिन हो जाता ।
अब तुम बिना जली बत्ती हिलाते रहो, इससे कुछ होनेवाला नहीं निरोध बिना जली बत्ती का हिलाना है। भीतर कुछ भी नहीं है। बोध में बत्ती हिलानी भी न पड़ेगी ; प्रकाश काफी है। प्रकाश के साथ ही क्रांति घटती है। निरोध से प्रकाश तो आता नहीं। समझो इस बात को ।
कहीं उल्टी तरफ से जीवन को पकड़ना शुरू किया तो चूकते चले जाओगे। मगर उल्टी तरफ से पकड़ने के पीछे कारण है। क्योंकि जब भी हमने किसी व्यक्ति के जीवन में संयम का महापर्व घटते देखा तो हमसे भूल हो गई। हमारे तर्क में भूल है । हमारे गणित में भूल है ।
महावीर को हमने देखा तो देखा, महाशांति को उपलब्ध, परम शांति को उपलब्ध । और साथ में हमने देखा, जीवन में बड़ा संयम है। तो हमने सोचा कि संयम करने से शांति मिली होगी। हम अशांत हैं; शांति हम भी चाहते हैं । कैसे शांति को पायें इसकी तलाश करते हैं । महावीर को देखा, देखा शांति है, संयम है। शांति हमें चाहिए। संयम की तो हमें भी चिंता नहीं है, शांति हमें चाहिए। तो अब साफ बात हो गई कि शांति तो हमारे जीवन में नहीं है और संयम भी हमारे जीवन में नहीं है। तो गणित हमारा बैठा कि महावीर के जीवन में शांति है और संयम; संयम से ही शांति घटी होगी ।
बात बिलकुल उल्टी है। शांति पहले घटी है, संयम पीछे आया है। शांति कारण है, संयम परिणाम है। हमने समझा, शांति परिणाम है, संयम कारण है। यहां भूल हो गई। और इस भूल हो
के पीछे भी कारण है। क्योंकि संयम ऊपर से दिखाई पड़ता है, पकड़ में आता है। महावीर चलते तो बड़े होशपूर्वक चलते हैं। बैठते हैं तो होशपूर्वक बैठते हैं। करवट भी नहीं बदलते रात; कि कहीं करवट बदलने से कोई कीड़ा-मकौड़ा पीछे आ गया हो तो दबकर मर न जाये। हर काम बड़े बोधपूर्वक करते हैं।
हमें क्या दिखाई पड़ा ? हमें दिखाई पड़ा, महावीर करवट नहीं बदलते। महावीर के भीतर जो बोध है वह तो हमें दिखाई पड़ता नहीं, करवट नहीं बदलते यह दिखाई पड़ता है। यह ऊपरी बात है । यह दिखाई पड़ जाती है। रात भर महावीर करवट नहीं बदलते । तो हमने सोचा, हम भी करवट न बदलें । तो तुम भी करवट बिना बदले पड़े हो। तुम्हें सिर्फ तकलीफ होती है करवट न बदलने में और कुछ नहीं होता। करवट न बदलने का तुम सिर्फ अभ्यास कर लेते हो - एक तरह की कसरत । तुम सर्कसी हो जाते हो। इससे और कुछ नहीं होता । अभ्यास रोज-रोज करोगे तो ठीक है, बिना करवट बदले पड़े रहोगे । यह कोई बड़ी बात थोड़े ही है !
लेकिन क्या करवट न बदलने से बोध का जन्म होगा ? तुम बिना जली बत्ती के लालटेन हिला रहे हो । महावीर के जीवन में बोध पहले घटा है। बोध घट जाने से करवट नहीं बदलते। बोध घट जाने से रात भोजन नहीं करते। बोध के घटने से ! तुम भी रात भोजन नहीं करते, बोध तो नहीं घटता। जैन कितने समय से रात भोजन नहीं कर रहे हैं। कौन-सा बोध घटा है ?
तुमने बाहर की तरफ से पकड़ा। तुमने बाहर से सोचा, बाहर से पकड़ेंगे तो भीतर पहुंच जायेंगे। बात और थी; भीतर पहले घटता है, तब बाहर घटता है। बाहर गौण है, भीतर प्रमुख है। केंद्र पर
स्वातंत्र्यात् परमं पदम्
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