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बाहर निकल पागल! देख, बाहर कैसी रोशनी है। फूल खिले, पक्षी गीत गाते, किरणों का जाल फैला है। और मैं तेरे द्वार पर खड़ा हूं और बार-बार दस्तक देता हूं। तू बहरी है? बाहर आ।
गुफा ने कहा, मुझे विश्वास नहीं आता। किस गुफा को कब विश्वास आया सूरज की आवाज पर? जब मैं तुम्हारे द्वार पर दस्तक देता हूं, तुम भी कहते हो विश्वास नहीं आता। कौन जाने कोई धोखा देने आया हो, कोई लूटने आया हो। गुफा के पास कुछ है भी नहीं और लूटे जाने का डर है!
लेकिन सूरज रोज दस्तक देता रहा। आखिर एक दिन गुफा को आना ही पड़ा। सोचा, एक दिन चलकर जरा झांककर देख लें। न तो फूलों का भरोसा था कि फूल हो सकते हैं; क्योंकि जो देखा न हो उसका भरोसा कैसे? न रोशनी का भरोसा था; क्योंकि रोशनी जानी ही न थी। तो रोशनी का अनुभव न हो, आभास भी न हुआ हो तो प्रत्यभिज्ञा कैसे हो? पहचान कैसे हो? आकांक्षा कैसे जगे? उसी को तो हम चाहते हैं जिसका थोडा स्वाद लिया हो। न भरोसा था कि पक्षियों के गीत होते हैं। पक्षियों का ही पता न था। गुफा तो बस अपने अंधेरे...अपने अंधेरे...अपने अंधेरे में डूबी रही थी। उस दिन बाहर आयी डरती-डरती, सकुचाती।।
तुम्हें जब मैं देखता हूं संन्यास में उतरते तो मुझे उस गुफा की याद आती है-डरते-डरते, सकुचाते। ऐसे आते हो कि अगर जरा लगे कि बात गड़बड़ है तो खिसक जाओ। सम्हाल-सम्हालकर कदम रखते हो। लौटने का उपाय तोड़ते नहीं। लौटने की पूरी व्यवस्था रखते हो कि अगर कुछ धोखाधड़ी हो तो लौट जायें।
ऐसी गुफा आयी, आयी तो चौंक गई। आयी तो रोने लगी। आयी तो आंख आंसुओं से भर गई। छाती पीटने लगी कि जनम-जनम मैंने अंधेरे में गुजारा। तुमने दया पहले क्यों न की? तुमने पहले क्यों न पुकारा?
देखते हो? सूरज रोज दस्तक दे रहा था, अब गुफा सूरज को ही उत्तरदायी ठहराती है कि पहले क्यों न पुकारा?
सूरज ने कहा, छोड़, जो गया सो गया। बीता सो बीता। अभी भी बहुत पड़ा है। अनंतकाल बाकी है, तू सुख से जी। अब बाहर आ। गुफा ने कहा, आऊंगी बाहर लेकिन तुम भी कभी मेरे भीतर आओ। जैसे मैंने प्रकाश नहीं जाना, हो सकता है, जिस अंधेरे को मैंने जाना, तुमने न जाना हो। सूरज ने उसका निमंत्रण माना, वह उसकी गुफा में गया। गुफा तो चौंककर रह गई। वहां अंधेरा था नहीं।
गुफा कहने लगी, यह हुआ क्या? यह हुआ कैसे? क्योंकि अंधेरा सदा था। एक दिन, दो दिन बात नहीं, जन्मों-जन्मों से मैंने अंधेरा जाना। यह हुआ क्या? आज अंधेरा गया कहां? सूरज जब बाहर विदा हो गया तब फिर अंधेरा था। गुफा ने फिर उसे निमंत्रण दिया। सूरज ने कहा, पागल! तू मुझे अंधेरे से मुकाबला न करवा सकेगी, क्योंकि जहां मैं हूं वहां अंधेरा नहीं है। मैं आया कि अंधेरा गया। अंधेरा कुछ है थोड़े ही, मेरा अभाव है। तो मेरा भाव और मेरा अभाव साथ-साथ थोड़े ही हो सकते हैं। अंधेरा मेरी अनुपस्थिति है। तो मेरी उपस्थिति और मेरी अनुपस्थिति साथ-साथ थोड़े ही हो सकती है। मैं जब भी आऊंगा, अंधेरा नहीं होगा। __ वासना बोध की अनुपस्थिति है। बोध आया, वासना गई। जब तक बोध नहीं है तब तक वासना है। वासना से मत भागो। इसलिए कहता हूं, भागो मत, जागो। जगाओ, भीतर जो सोया है उसे। मन
स्वातंत्र्यात परम पदम
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