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आदर के कारण तुम्हारे भीतर का भगोड़ा भी मरता नहीं। वह आदर तुम्हारे भीतर के भगोड़े को भी जगाये रखता है, जिंदा रखता है। तुम आदर उसी का करते हो जैसे तुम होना चाहते हो, इस पर खयाल रखना। आदर ऐसे ही थोड़े ही करता है कोई किसी का! जैसे तुम होना चाहते हो उसी का तुम आदर करते हो। अगर तुम भगोड़ों का आदर करते हो तो भगोड़ा तुम्हारे भीतर बैठा है, प्रतीक्षा में है ठीक अवसर की। मौका पाकर भाग खड़ा होगा।
लेकिन यह भागना भय पर आधारित है। भय यानी कायरता।
सूत्र है:
विषयद्वीपिनो वीक्ष्य चकिताः शरणार्थिनः। विषयरूपी बाघ को देखकर भयभीत हुआ मनुष्य शरण की खोज में शरणार्थी हो जाता।
शरणार्थी होना कोई सुखद बात नहीं है। ये जो गुफाओं में बैठे हैं, रिफ्यूजी हैं। भाग गये। शरणार्थी हैं। दया के पात्र हैं। पूजा के पात्र जरा भी नहीं। इनकी चिकित्सा की जरूरत है। इन्हें फिर कोई हिम्मत दे। इनकी बुझती ज्योति को फिर कोई जलाये। इनके चुकते स्नेह को फिर कोई भरे। इनका दीया फिर जगमगाये। इन्हें फिर कोई खींचकर लाये कि आओ, जहां परीक्षा है वहीं कसौटी है। भागो मत। जूझो। उतरो जीवन के संग्राम में। डर क्या है? खोने को क्या है? तुम्हारे भीतर जो छिपा है वह खोया नहीं
जा सकता। ___तुम हो क्या मूलतः? चैतन्य। तो चैतन्य को तो खोया नहीं जा सकता। और चैतन्य को जगाना हो तो असुविधा में ही जगाया जा सकता है, सुविधा में तो सो जाता है। जंगल में चले गये जहां कोई अशांति नहीं है, बैठ गये गुफा में। जहां कोई विषय तुम्हारी वासना को प्रज्वलित नहीं करते, प्रलोभित नहीं करते, उत्तेजित नहीं करते। धीरे-धीरे वासना सो जायेगी; मिटेगी नहीं। जिस दिन लौटोगे उसी दिन तुम पाओगे वासना फिर जाग गई। बीज पड़े रहेंगे, समय पाकर फिर, मौसम पाकर फिर अंकुरित हो जायेंगे।
तो जो एक दफे भाग गया वह फिर लौटने में घबड़ाता है। उसे कोलाहल परेशान करता है। यह कोई ध्यान हुआ कि कोलाहल परेशान करने लगे? ध्यान तो वही है कि कोलाहल में भी अखंडित रहे। ध्यान तो वही है कि बीच बाजार में भी अखंडित रहे। चले शोरगुल, चले संसार, और तुम्हारे भीतर कुछ भी न चले। सब चुप और मौन रहे।
शरणार्थी मत बनना। 'विषयरूपी बाघ को देखकर भयभीत हुआ...।'
अब यह जो विषयरूपी बाघ है, यह जो कामना, वासना का बाघ है, यह तुम्हारे बाहर होता तो भाग भी जाते; इसे थोड़ा समझना। यह तुम्हारे भीतर है, भागोगे कहां? अपने से कैसे भागोगे? __यह तो ऐसे ही हुआ जैसे कोई अपनी ही छाया से भाग रहा हो। वह जहां जायेगा, छाया वहां रहेगी; कितनी ही तेजी से भागो। ऐसा हो सकता है कि तुम किसी वृक्ष की छाया में बैठ जाओ तो छाया दिखाई न पड़े। यह हो सकता है, लेकिन जब धूप में उतरोगे तब छाया दिखाई पड़ने लगेगी। जब तुम वृक्ष की छाया में विश्राम कर रहे हो तब छाया भी विश्राम कर रही है। धूप में आते ही फिर प्रकट हो जायेगी। छाया तो तुम्हारे साथ लगी है।
स्वातंत्र्यात परम पदम्
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