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रहा है। तो फिर क्या बचा? अब जो करवाये वह करो। जो हो उसे देखो।
नहीं, लेकिन तुम हो चालबाज। ध्यान तो करना नहीं चाहते, तो कहते, जब उसकी इच्छा से होगा, होगा। संन्यास तो तुम लेने में डरते हो, कायर हो। तो कहते हो, यह सब तो बकवास। लेकिन यह मन की बेचैनी कैसे मिटे इसकी तरकीब खोज रहे हो। इन बेईमानियों का ठीक-ठीक साक्षात्कार करो। ____ मन की बेचैनी मिटाने को ही संन्यास है। मन की बेचैनी मिटाने का ही उपाय ध्यान है। मन मिटे इसी का नाम तो अध्यात्म है। और इनको तुम बकवास कह रहे हो। अब तुम्हारी मर्जी। तो फिर मन की बेचैनी को हटाने का कोई उपाय नहीं। औषधि को तो बकवास कह रहे हो, फिर कहते हो बीमारी है, अब इसका क्या करें? अब बीमारी को सम्हालो। पूजा करो इसकी। मंदिर बनाओ; उसमें रखकर
न की बेचैनी, घंटे बजाओ, आरती उतारो। क्या करोगे और? 'औषधि तो बकवास है! और औषधि का प्रयोग किया? प्रयोग करके कह रहे हो? ध्यान करके कह रहे हो? अध्यात्म में उतर कर कह रहे हो? संन्यास का कोई अनुभव है? ___ बच्चों जैसी बातें न करो। बिना अनुभव के तो कुछ मत कहो। जिसका अनुभव नहीं उस संबंध में तो वक्तव्य मत दो। जिसका अनुभव नहीं है उस संबंध में चुप रहो। अपने अनुभव की सीमा के बाहर जाकर कोई बात मत कहो, अन्यथा वही बात तुम्हारी गर्दन पर फांसी बन जायेगी।
अब तुम पूछते हो, 'फिर भी मन में एक अजीब-सी बेचैनी बनी रहती है। कृपया मार्गदर्शन करें।'
अब क्या खाक! मार्गदर्शन का उपाय नहीं छोड़ा तुमने कोई। क्योंकि जो भी मैं कहूंगा वह सब बकवास है। क्योंकि वह या तो अध्यात्म की कोटि में आयेगा, या ध्यान की कोटि में, या संन्यास की कोटि में। जो भी मैं कहूंगा...। . जरा प्रश्न करनेवाले का प्रश्न ठीक से समझें, क्योंकि ऐसी स्थिति बहुत लोगों की है। __ 'न तो कोई प्रश्न निर्धारित कर पाता हूं और न कोई उत्तर पाने की लालसा है। फिर भी मार्गदर्शन...।' ___ तुम्हें अगर कोई उत्तर भी दे तो भी तुम धन्यवाद देने को भी तैयार नहीं हो, इसलिए कह रहे हो यह बात : कि न कोई उत्तर पाने की लालसा है। तो जब उत्तर पाने की लालसा ही न रही तो तुम मार्गदर्शन कैसे लोगे? उत्तर पाने की लालसा हो, अभीप्सा हो, मुमुक्षा हो, गहरी प्यास हो, तो ही उत्तर लोगे; नहीं तो उत्तर कैसे लोगे? मेरा दिया उत्तर व्यर्थ जायेगा। तुमसे कहीं संबंध न बनेगा।
और तुम कहते हो, 'आपको सुन-सुनकर तथा कुछ अपने अनुभव से...।'
मुझे तो तुमने सुना ही नहीं है। यहां बैठे भला होओ तुम, मगर अगर मुझे सुना होता तो जीवन रूपांतरित हो जाता। यह मन की बेचैनी अपने आप चली गई होती। मुझे सुना होता तो ध्यान लग जाता। मुझे सुना होता तो अध्यात्म का रस आ जाता। मुझे सुना होता तो संन्यास उतर आता। मुझे तो तुमने सुना नहीं है। हां, तुमने कुछ सुन लिया होगा, जो तुम सुनना चाहते हो। ___ मन बड़ा चालबाज है। और उसकी चालबाजियां बड़ी सूक्ष्म हैं। वह वही सुन लेता है जो सुनना चाहता है। मतलब की बात सन लेता है। जो नहीं सनना है, नहीं सनता।
मुल्ला नसरुद्दीन से मैंने एक दिन पूछा कि नसरुद्दीन, तू कुरान रोज पढ़ता है फिर भी तू शराब पीये चला जाता है? कुरान में तो साफ लिखा है शराब के खिलाफ। उसने कहा, बिलकुल लिखा है।
मन तो मौसम-सा चंचल
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