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जीवन को देखने-समझने का एक और ढंग है बुद्धि से अतिरिक्त-हृदय का; विचार के अतिरिक्त प्रेम का।
प्यार अगर थामता न पथ में उंगली इस बीमार उमर की हर पीड़ा वेश्या बन जाती हर आंसू आवारा होता
मन तो मौसम-सा चंचल है सबका होकर भी न किसी का अभी सुबह का अभी शाम का अभी रुदन का अभी हंसी का
जीवन क्या है? एक बात जो इतनी सिर्फ समझ में आये कहे इसे वह भी पछताये सुने इसे वह भी पछताये
मगर यही अनबूझ पहेली शिशु-सी सरल-सहज बन जाती अगर तर्क को छोड़, भावना के संग किया गुजारा होता
हर घर आंगन रंगमंच है
और हरेक सांस कठपुतली प्यार सिर्फ वह डोर कि जिस पर नाचे बादल नाचे बिजली
तुम चाहे विश्वास न लाओ लेकिन मैं तो यही कहूंगा प्यार न होता धरती पर तो सारा जग बंजारा होता
प्यार अगर थामता न पथ में उंगली इस बीमार उमर की
मन तो मौसम-सा चंचल
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