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कभी कहते, रसने अंधा बना दिया। क्या करें, इस स्त्री ने अंधा बना दिया। क्या करें, इस पुरुष ने अंधा बना दिया। क्या करें, रास्ते पर धन पड़ा था इसलिए चोरी का मन हो गया।
क्या बातें कर रहे हो? चोरी का मन था इसलिए रास्ते पर पड़ा धन दिखाई पड़ा, अन्यथा दिखाई भी न पड़ता। पड़ा रहता। चोर न होते तो दिखाई भी न पड़ता। चोर हो । रास्ते पर पड़े धन ने तो भीतर जो पड़ा था उसको उभार दिया । और जरा देखो, रास्ते पर पड़ा हुआ धन निर्जीव है। निर्जीव ने तुम्हें चलायमान कर दिया ? तो तुम निर्जीव से भी गये-बीते हो गये ।
एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन मेरे साथ राह पर चल रहा था। एकदम दौड़ा, किनारे पर जाकर झुका, कुछ उठाया और फिर बड़ा गुस्सा होकर उसे फेंका और गालियां देने लगा। मैंने पूछा, बात क्या हुई बड़े मियां? तो उसने कहा, अगर यह आदमी मुझे मिल जाये जो अठन्नी की तरह थूकता है तो इसकी गर्दन काट दूं। किसी ने खखारकर थूका है, वह उनको अठन्नी मालूम पड़ रही है। अब वह उसकी गर्दन काटने को तैयार है !
तुम अंधे हो। कोई तुम्हें अंधा नहीं बना रहा है। रस प्रभु का स्वभाव है, परमात्मा का जीवन है । रस अभी तुम्हें मिला नहीं ।
खोलो आंख, रस मिलेगा। और जब रस मिलता है तो जीवन धन्य होता है ।
चौथा प्रश्नः न तो कोई प्रश्न निर्धारित कर पाता हूं और न कोई उत्तर पाने की ही लालसा है। आपको सुन-सुनकर तथा कुछ अपने अनुभव से मुझे लगता है कि सारे प्रश्नोत्तर, अध्यात्म, संन्यास, बौद्धिकता, गुरुडम, सब व्यर्थ की बकवास है क्योंकि सब कुछ उसी की इच्छा से होता है। फिर भी मन में एक अजीब-सी बेचैनी बनी रहती है। कृपया मार्गदर्शन करें।
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यह बेचैनी भी उसी की इच्छा से हो रही होगी! इतनी-सी बात समझ में नहीं आती? बड़ी-बड़ी बातें समझ में 'आ गईं: संन्यास, अध्यात्म, ध्यान, सब बकवास है। इतने बड़े ज्ञानी हो गये, और यह जो मन में बेचैनी बनी है, यह समझ में नहीं आती!
यह सब उसी की इच्छा से हो रहा है तो यह बेचैनी भी उसी की इच्छा से हो रही होगी, इसको स्वीकार कर लो। इस बेचैनी से बेचैन होने का क्या कारण है ? कहते हो, सब उसी की इच्छा से हो
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5