________________
लेकिन अगर इतनी बात सुनकर हल न हो और मन में बेचैनी बनी रहे तो तुम्हारे लिए ध्यान की जरूरत है। तुम ध्यान के माध्यम से ही एक दिन मन की बेचैनी के पार होओगे। और मन के जब पार होओगे तब ध्यान की बोतल और विचार की बीमारी, दोनों कचरेघर में फेंक देना। फिर दवाइयां अपने साथ लिये मत फिरना। फिर इनकी कोई जरूरत न रह जायेगी। तब तुम्हारे लिए अष्टावक्र का अर्थ प्रकट होगा। __ कल मैंने तुमसे कहा कि दो तरह की संभावनायें हैं : श्रावक और साधु। जो सुनकर ही पहुंच जाये, सुनते ही पहुंच जाये, सुनने में और पहुंचने में क्षण भर का जिसे फर्क न रहे, इधर बात समझी कि हो गई—जिसके पास ऐसी प्रगाढ़ मेधा हो उसके लिए तो साधु बनने की कोई जरूरत नहीं। वह तो साधु हो ही गया। लेकिन ऐसा न हो पाये, मन में बेचैनी बनी रहे तो फिर साधु की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। फिर धीरे-धीरे काटना पड़ेगा। जो एक ही तलवार की चोट में नहीं कटता है, वह फिर धीरे-धीरे काटना पड़ेगा। उस धीरे-धीरे काटने का नाम ही साधना है।
तुम अपने को समझ लेना। तुम्हारी मन की बेचैनी ही खबर देती है कि तुम्हें धीरे-धीरे काटना पड़ेगा। अध्यात्म, संन्यास, ध्यान, गुरु, सबसे तुम्हें गुजरना पड़ेगा। . और देर मत करो। क्योंकि कुछ पक्का नहीं है, आज हो, कल न हो जाओ। देर मत करो, समय का कुछ भरोसा नहीं है। और जो गया समय वह तो लौटता नहीं। और जो आ रहा है आगे वह आयेगा, नहीं आयेगा, इसकी कोई सुनिश्चितता नहीं है। यही क्षण तुम्हारे हाथ में है। चाहे बेचैन हो लो, चाहे ध्यान में उतर जाओ। चाहे संसार में भटक लो, चाहे संन्यास में उठ जाओ। यही क्षण तुम्हारे हाथ में है; या तो अभी या कभी नहीं। कल के लिए मत सोचना कि सोचेंगे, कल कर लेंगे।
क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा क्या सुरूप था कि देख आईना सिहर उठा इस तरफ जमीन और आसमां उधर उठा थामकर जिगर उठा कि जो मिला नजर उठा एक दिन मगर यहां ऐसी कुछ हवा चली लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली
और हम लटे-लटे वक्त से पिटे-पिटे सांस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवां गजर गया गुबार देखते रहे जल्दी ही पिट जाओगे। वक्त सभी को पीटकर रख देता है। जल्दी ही लुट जाओगे। वक्त का लुटेरा किसी की चिंता नहीं करता, सभी को लूट लेता है। वक्त का लुटेरा न कोई कानून मानता, न कोई राज्य मानता, न कोई सरकार मानता। वक्त का लुटेरा लूट ही रहा है, काट ही रहा है तुम्हारे जीवन की जड़ों को।
और हम लुटे-लुटे वक्त से पिटे-पिटे सांस की शराब का खुमार देखते रहे कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे
Ram
मन तो मौसम-सा चंचल
199