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दिया। तुमने कहा बदलो, अब नहीं बदलते तो तुम्ही जिम्मेवार हो। अब तुमने अपना दायित्व भी हटा लिया। अब तुम अपराधी भी अनुभव न करोगे अपने को। तुम कहोगे, अब मैं क्या करूं? इतना कर सकता था कि तुमसे कह तो दिया कि बदलो। और तुम अपने पुराने ढर्रे को जारी रखे हो। और तुम बदलना जरा भी नहीं चाहते।
तुम्हारी प्रार्थनायें अक्सर तुम्हारी बदलाहट की आकांक्षा की सूचक नहीं होती। तुम्हारी प्रार्थनायें केवल इस बात की सूचक होती हैं कि हम तो यह करने को तैयार नहीं हैं, अब तुझे करना हो तो देखें कैसे करता! दिखा दे चमत्कार। तुम चमत्कार के आकांक्षी हो। ऐसे चमत्कार होते नहीं, हुए नहीं कभी; होंगे भी नहीं। तम्हें परम स्वतंत्रता मिली है। तम्हें अपने जीवन का गीत गुनगुनाने की पूरी आजादी मिली है।
यही शब्द गालियां बन जाते हैं और यही शब्द मधुर गीत। तुमने खयाल किया? वर्णमाला वही की वही है। गाली दो कि गीत बना लो, वर्णमाला वही की वही है। पूजा करो कि पाप कर लो, वर्णमाला वही की वही है। संभोग में उतर जाओ कि समाधि में उठ जाओ, वर्णमाला वही की वही है। सिर्फ संयोजन बदलता है, सिर्फ आयोजन बदलता है, सिर्फ व्यवस्था बदलती है।
संन्यास व्यवस्था को बदलने का प्रयोग है।
संसारी की तरह रहकर देख लिया, अब थोड़े संन्यासी की तरह रहकर देखो। बदलो आयोजन को। और मैं तुमसे यह कहता हूं कि तुम्हारे पास जो भी है उसमें गलत कुछ भी नहीं है; भला तुमने गलत उपयोग किया हो। जो भी तुम्हारे पास है, गलत कुछ भी नहीं है; सिर्फ व्यवस्थित करना है।
ऐसा ही समझो कि एक हार्मोनियम रखा है और एक आदमी जो संगीत नहीं जानता, हार्मोनियम बजा रहा है। अंगुलियां भी ठीक हैं, हार्मोनियम भी ठीक है, हार्मोनियम की चाबियों पर अंगुलियां चलाना भी ठीक है, स्वर भी पैदा हो रहे हैं, लेकिन मुहल्ले-पड़ोस के लोग पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे कि यह आदमी पागल किये दे रहा है। ____ मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन एक रात ऐसा ही हार्मोनियम बजा रहा था। आखिर पड़ोसी के बर्दाश्त के बाहर हो गया तो पड़ोसी ने खिड़की खोली और उसने कहा कि नसरुद्दीन, अब बंद करो नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगा। मुल्ला ने कहा, भाई, अब व्यर्थ है बकवास करना। घंटा भर हुआ मुझे बंद किये। पागल तुम हो चुके!
हार्मोनियम ठीक, अंगुलियां स्वस्थ, बजानेवाला ठीक, सब ठीक है, जरा सीख चाहिए। जरा स्वरों का बोध, ज्ञान चाहिए। जरा स्वरों में मेल बिठाने की कला चाहिए। वही हार्मोनियम, वही अंगलियां, वही आदमी, और पागल भी सनकर स्वस्थ हो सकते हैं।
संगीत पर प्रयोग चल रहे हैं पश्चिम में। और इस बात के आसार हैं कि आनेवाली सदी में संगीत पागलों के इलाज का अनिवार्य उपाय हो जायेगा। क्योंकि संगीत को सुनकर तुम्हारे भीतर के स्वर भी शांत हो जाते हैं। उनमें भी तालमेल हो जाता है। बाहर के संगीत की छाया तुम्हारे भीतर भी पड़ने लगती है। बड़े प्रयोग चल रहे हैं। संगीत मनुष्य के स्वास्थ्य का उपाय हो सकता है। विक्षिप्त जो हो गया है. उसे वापिस स्वस्थ करने में खींच ला सकता है। और अगर नहीं जानते तो वही स्वर उन्माद पैदा कर सकते हैं। बस इतना ही फर्क है।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5