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तीसरा प्रश्नः
मैं तुम्हारी रहमत का उम्मीदवार आया हूं मुंह ढांपे कफन से शर्मसार आया हूं आने न दिया बारे-गुनाह ने पैदल ताबूत में कंधे पर सवार आया हूं | | सी ही हालत है। परमात्मा के सामने
| कौन-सा मुंह लेकर खड़े होओगे? दिखाने के लिए कौन-सा चेहरा है तुम्हारे पास? तुम्हारे सब चेहरे तो मुखौटे हैं। ये तो छोड़ देने होंगे। तुम्हारे पास क्या है परमात्मा को अर्पण करने को? जिसको तुम जीवन कहते हो वह तो बड़ा बेसार मालूम पड़ता। तुम्हारे पास फूल कहां हैं जो तुम चढ़ाओगे?
वृक्षों के फूलों को चढ़ाकर तुम सोचते हो, तुमने पूजा कर ली? पूजा हो रही थी, उसमें तुमने बाधा डाल दी। वृक्ष के ऊपर फूल पूजा में लीन थे। परमात्मा के चरणों में चढ़े थे जीवंत रूप से, सुगंधित हो रहे थे, हवाओं में नाच रहे थे। बिखेर रहे थे अपनी सुवास। तुम तोड़कर उनको मार डाले। गंध बिखर गई, फूल के प्राण खो गये। इस मुर्दा फूल को तुम जाकर चढ़ा आये परमात्मा के चरणों में। तुम्हारे परमात्मा मिट्टी-पत्थर के हैं, मुर्दा; और जहां तुम जीवन देखते हो उसको भी तत्क्षण मुर्दा कर देते हो।
फूल चढ़ाना अपने चैतन्य का, सहस्रार का। तुम्हारा कमल जब खिले भीतर, खिलें उसकी हजारों पंखुड़ियां, तब चढ़ाना। बुद्ध ने ऐसा कमल चढ़ाया, अष्टावक्र ने ऐसा कमल चढ़ाया, कबीर-नानक ने ऐसा कमल चढाया। जिस दिन ऐसा कमल चढाओगे. उस दिन चढाया। और उसे तोडकर नहीं चढ़ाना पड़ेगा। तुम चढ़ जाओगे। तुम प्रभु के हो जाओगे। तुम प्रभुमय हो जाओगे।
अभी तो हालत बुरी है। अभी तो बड़ी लज्जा की स्थिति है। ठीक है यह पद किसी कवि काः । 'मैं तुम्हारी रहमत का उम्मीदवार आया हूं।'
अभी तो परमात्मा से तुम सिर्फ करुणा मांग सकते हो, दया। अभी तो तुम भिखारी की तरह आ सकते हो। और ध्यान रखना, मैं तुमसे कहता हूं कि परमात्मा के द्वार पर जो भिखारी की तरह जायेगा वह कभी जा ही नहीं पाता। सम्राट की तरह जाना होता है। जो मांगने गया है वह परमात्मा तक पहुंचता ही नहीं। जो परमात्मा को देने गया है वही पहुंचता है।
कुछ लेकर जाओ। कुछ पैदा करके जाओ। कुछ सृजन हो तुम्हारे जीवन में। कुछ फूल खिलें। कुछ सुगंध बिखरे। कुछ होकर जाओ। उत्सव, संगीत, नृत्य, समाधि, प्रेम, ध्यान, कुछ लेकर जाओ। खाली हाथ परमात्मा के दरबार में मत पहुंच जाना। झोली लेकर तो मत जाओ भिखारी की। यह झोली ही तो तुम्हारी वासना है। इस झोली के कारण ही तो तुम भटके हो जन्मों-जन्मों। मांग रहे, मांग रहे, मांग रहे। कुछ मिलता भी नहीं, मांगे चले जाते। अभ्यस्त हो गये हो भीख के। _ 'मैं तुम्हारी रहमत का उम्मीदवार आया हूं।'
नहीं, परमात्मा के द्वार पर करुणा मांगने मत जाना; दया के पात्र होकर मत जाना। मगर ऐसा ही आदमी जाता है।
'मुंह ढांपे कफन से शर्मसार आया हूं।'
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5