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के पास है वह मनमोहक मालूम पड़ता है।
ऐसी मनोदशा के व्यक्तियों को महात्मा भी मिल जाते हैं उनकी मनोदशा के। वे कहते हैं परस्त्री का ध्यान किया कि पाप हुआ। वह उनको बात जंचती है, क्योंकि वे परस्त्री का ही ध्यान कर रहे हैं। इस महात्मा में और उनकी भाषा में कोई भी भेद नहीं है। गणित एक है। ___ अब जो महात्मा परस्त्री इत्यादि की बातें कर रहा है यह कोई महात्मा है? महात्मा मौलिक बात कहेगा, आधारभूत बात कहेगा। वास्तविक संत वही कहेगा जो बहुत सारभूत है। इतनी बात जरूर संत कहेगाः स्वगमनस्वसंभोग, स्वयं में डब जाना. स्व-स्मति. स्वास्थ्य मार्ग है। पररुचि, पर पर दृष्टि अस्वास्थ्य है। क्योंकि पर में जैसे ही तुम उत्सुक हुए कि तुम अपने केंद्र से च्युत होते हो। तुम्हारा केंद्र छूटने लगता है। तुम अपने से दूर जाने लगते हो।
आखिरी प्रश्नः आपकी बातें अनेकों को अप्रिय क्यों लगती हैं?
म ननेवाले पर निर्भर है। तुम अगर सच
में ही सत्य की खोज में मेरे पास आये हो तो मेरी बातें तुम्हें प्रिय लगेंगी। और तुम अगर अपने मताग्रहों को सिद्ध करने आये हो कि मैं वही कहूं जो तुम मानते हो, तो अप्रिय लगेंगी। तुम अगर पक्षपात से भरे आये हो तो अप्रिय लगेंगी। तम अगर खाली मन से सुनने आये हो, सहानुभूति से, प्रेम से तो बहुत प्रिय लगेंगी।
तुम पर निर्भर है। तुम्हारे मन में क्या चल रहा है इस पर निर्भर है। अगर तुम्हारे मन में कुछ भी नहीं चल रहा है, तुम परम तल्लीनता से सुन रहे हो, तो ये बातें तुम्हारे भीतर अमृत घोल देंगी। और अगर तुम उद्विग्नता से सुन रहे हो, हिंदू, मुसलमान, ईसाई होकर सुन रहे हो कि अरे, यह बात कह दा! हमार महात्मा के खिलाफ यह बात कह दी। तो फिर तुम बेचैन हो जाओगे, तुम नाराज हो जाओगे। अप्रिय लगने लगेंगी। तुम पर निर्भर है। ____ अब जैसे, अभी मैंने दौलतराम खोजी की बात कही; तुम सब हंसे, सिर्फ दौलतराम खोजी को छोड़कर। मैं उनको जानता नहीं, लेकिन अब पहचानने लगा। क्योंकि इतने लोगों में सिर्फ एक आदमी नहीं हंसता है। अब दौलतराम खोजी को अप्रिय लग सकती है बात। क्योंकि नाम से मोह होगा कि
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5