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यह आदमी, जिसके घर यह घुमक्कड़ मेहमान था, गरीब था ही नहीं, क्योंकि इसे कभी अमीर होने का खयाल ही न उठा था। उस रात गरीब हो गया। उस घुमक्कड़ ने कहा, इसमें ही पड़े रहोगे, कभी अमीर न हो पाओगे। अमीरी का खयाल उठा कि गरीब हो गया। रात सो न सका। रोज निश्चित सोता था, उस रात बड़ी उधेड़बुन रही। सुबह उठकर घुमक्कड़ से पूछा कि तुम तो सारी जमीन पर घूमते हो, कोई ऐसी जगह है जहां मैं अमीर हो जाऊं? उसने कहा, ऐसी जगह है साइबेरिया में। वहां अजीब लोग हैं, अभी भी जंगली। उनको अभी भी कुछ अक्ल नहीं है। वहां तुम चले जाओ। इतनी जमीन बेच दो यहां। इतने पैसे में तो वहां तुम जितनी जमीन चाहो, ले लो।
फिर तो क्या था, वासना जाग गई। उस आदमी ने जमीन-मकान सब बेच दिया। बच्चे-पत्नी बहुत रोये। उसने कहा, तुम घबड़ाओ मत, जल्दी ही हम अमीर हो जायेंगे। अमीर वे थे ही, क्योंकि कभी गरीबी का खयाल ही न उठा था। मस्त थे. लेकिन बडी बरी तरह से गरीब हो गये
वह सब बेच-बाचकर पहंचा दर साइबेरिया में। वहां जाकर पता चला कि घमक्कड़ ने ठीक कहा था। अजीब लोग थे। घुमक्कड़ ने कहा था, तुम बस किसी भी कबीले के प्रमुख को प्रसन्न कर लेना।
और प्रसन्न वे छोटी-छोटी बातों से हो जाते हैं। हुक्का ले जाना, तमाखू ले जाना, शराब ले जाना, बस भेंट कर देना। वह खुश हो जाये तो तुम कहना, थोड़ी जमीन चाहिए। उसने खुश कर लिया एक प्रमुख को। प्रमुख ने कहा, तो ले लो जितनी जमीन...कितनी चाहिए? तो वह कुछ सोच न पाया। तो उसने कहा, ऐसा करो, प्रमुख ने कहा, कल सुबह सूरज उगते तुम निकल पड़ना। और जितनी जमीन तुम घेर लो सांझ सूरज डूबने तक, सब तुम्हारी। जितने का चक्कर लगा लो।
वह आदमी तो दीवाना हो गया कि इतनी जमीन, जितने का दिन भर में मैं चक्कर लगा लूं? फिर रात भर सो न सका। रात भर चक्कर लगाता रहा। रात भर सपने में दौड़ता रहा, दौड़ता रहा। सुबह उठा तो बड़ा थका-मांदा था। नींद ही न हुई थी और रात भर दौड़ा था। एक दुखस्वप्न था। लेकिन उसने कहा, कोई हर्जा नहीं। उसने सुबह नाश्ता भी न किया, क्योंकि पेट भारी होगा तो शायद ज्यादा चक्कर न लगा पाये। सिर्फ उसने पानी की एक थर्मस लटका ली।
और वह तो भागा। इतनी तेजी से भागा, जीवन में कभी भागा नहीं था। एकदम तीर की तरह भागा। एक क्षण खोना खतरनाक था। उसने तय कर रखा था मन में कि ठीक बारह बजते-बजते जब सूरज सिर पर होगा तो लौटना शुरू कर दूंगा, क्योंकि फिर लौटना भी है। लेकिन जब सूरज सिर पर था तो मन मोहने लगा कि थोड़ा और। कई मील चल चुका था। इतना विराट घेर लिया था और इतनी सुंदर जमीन थी। जब सूरज सिर पर आया तो उसने कहा, थोड़ा और घेर लूं। जरा जोर से दौड़ना पड़ेगा, और क्या! एक दिन की ही बात है, और दौड़ लूंगा।
उसने रुककर पानी भी न पीया, क्योंकि प्यास तो लगी थी लेकिन रुककर पानी पीये, उतना समय खो जाये। उतनी देर में तो एकड़-दो एकड़ घेर ले। सूरज ढलने लगा लेकिन मन लौटने का न हो। सोचा उसने, जीवन दांव पर लगा लूं। एक ही दिन की तो बात है।
फिर लौटा; अब बड़ी मुश्किल हो गई। अब वह भाग रहा है, भाग रहा है, दिन भर का थका-मांदा। सूरज ढलने-ढलने को होने लगा; वह भाग रहा है, वह भाग रहा है। सारा गांव खड़ा है देखने के लिए। और लोग उसे उत्साहित कर रहे कि दौड़, क्योंकि सूरज डूब रहा है। अगर सूरज डूबते
दश्य से द्रष्टा में छलांग
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