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जो देखा, सपना था
अनदेखा अपना था बस एक चीज अनदेखी है, वह तुम स्वयं हो। उसको तुमने कभी नहीं देखा। और तो तुमने सब देख डाला, सारा संसार देख डाला। दूसरे तो तुमने खूब देख लिये। एक चीज अनदेखी रह गई है : तुम्हारा स्वयं का स्वरूप।
अष्टावक्र कहते हैं: धीरास्तं तं न पश्यंति पश्यंत्यात्मानमव्ययम्। 'धीरपुरुष दृश्य को नहीं देखते हैं, अविनाशी आत्मा को देखते हैं।'
और जिसने इस अविनाशी, अव्यय आत्मा को देख लिया उसने दृश्यों का दृश्य देख लिया। जो पाने योग्य था, पा लिया। जो सार था, उसके हाथ आ गया; जो असार था, उसने छोड़ दिया।
तम्हारे भीतर अमत विराजमान है। जिसके लिए तम तरस रहे हो वह तुम्हारे भीतर छिपा पड़ा है। जिस धन को तुम खोजने निकले हो उस धन का अंबार तुम्हारे भीतर लगा है। संपत्ति भीतर है, बाहर तो विपत्ति है। संपदा भीतर है, बाहर तो विपदा है। उलझन बढ़ती है, घटती नहीं। समस्यायें गहरी होती हैं, हल नहीं होती। __ समाधि और समाधान तो भीतर हैं। बाहर तो सिर्फ समस्याओं का जाल फैलता चला जाता है। एक समस्या में से दस समस्याओं के अंकुर निकल आते हैं। एक उलझन को सुलझाने चलो, दस उलझनें खड़ी हो जाती हैं। फिर इनको ही सुलझाते-उलझाते जीवन बीतता। एक दिन मौत द्वार पर खड़ी आ जाती। और तब एक क्षण का भी समय नहीं मिलता। तुम फिर लाख सिर पटको कि थोड़ा और समय मुझे मिल जाये, जरा-सा भी समय मिल जाये, चौबीस घंटे का समय मिल जाये, जरा ध्यान कर लूं, सदा टालता रहा, लेकिन फिर एक क्षण भी नहीं मिलता।
और आश्चर्य की बात तो यही है कि इतनी अपूर्व राशि को तुम लिये चलते हो। बुद्ध कहते हैं, कृष्ण कहते हैं, क्राइस्ट कहते हैं, नानक-कबीर-दादू कहते हैं; सारे जगत के रहस्यमय पुरुष, सारे जगत के संत एक ही बात कहते हैं कि तुम्हारे भीतर अपरंपार संपदा पड़ी है। प्रभु का राज्य तुम्हारे भीतर है, फिर भी तुम सुनते नहीं। और बाहर तुम देखते हो अनेकों को तड़फते। सारा संसार तड़फता। जिनके पास बहुत है वे भी वैसे ही उदास; फिर भी तुम जागते नहीं।
निरपवाद रूप से अगर कोई बात कही जा सकती है तो एक है-जिन्होंने बाहर खोजा, कभी नहीं पाया। एक भी अपवाद नहीं हुआ इसका। आज तक मनुष्य-जाति में एक आदमी ने ऐसा नहीं कहा कि मैंने बाहर खोजा और पा लिया। और अब तक जिसने भी पाया उसने भीतर खोजकर पाया। वह भी निरपवाद। जिसने भी कहा, मुझे मिला, उसने कहा भीतर मिला।
ये सत्य के दो पहलू हैं; एक ही सत्य के। बाहर कभी किसी को नहीं मिला। अनंत-अनंत लोगों ने खोजा। और जिन थोड़े-से लोगों को मिला उन्हें भीतर खोजकर मिला। और क्या प्रमाण चाहते हो? धर्म निरपवाद विज्ञान है-इस अर्थ में। एक भी बार इसमें चूक नहीं हुई। फिर भी हम बाहर भागते हैं। फिर भी हम भीतर नहीं जाते।
___ हम वे लोग हैं जो घोल दें खुशबू हवा में
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5