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एक को जान लेने से सब जान लिया जाता है। और वह एक प्रत्येक के भीतर बैठा है। __ परमात्मा को दृश्य की तरह सोचना बंद करो। परमात्मा को द्रष्टा की तरह देखना शुरू करो। इसीलिए तो कहते हैं, आत्मा ही परमात्मा है। पहचान ली तो परमात्मा हो गई, न पहचानी तो आत्मा बनी रही। अगर तुम अपने ही भीतर गहरे उतर जाओ और अपनी ही गहराई का आखिरी केंद्र छू लो तो कहीं खोजने नहीं जाना। तुम मंदिर हो। परमात्मा तुम्हारे भीतर विराजमान है।
लेकिन यात्रा की दिशा बदलनी पड़ेगी। दृश्य है बाहर, द्रष्टा है भीतर। दृश्य है पर, द्रष्टा है स्व। दृश्य को देखना हो तो आंख खोलकर देखना पड़ता है। द्रष्टा को देखना हो तो आंख बंद कर लेनी पड़ती है। दृश्य को देखना हो तो विचार की तरंगें सहयोगी होती हैं। और द्रष्टा को देखना हो तो निर्विचार, अकंप दशा चाहिए। दृश्य को देखना हो तो मन उपाय है, और द्रष्टा को देखना हो तो ध्यान।
ध्यान का अर्थ है, मन से मुक्ति। मन का अर्थ है, ध्यान से मुक्ति। जिसने ध्यान खोया वह मन बना और जिसने मन खोया वह ध्यान बना। जरा-सी ही बात है : बाहर न देखकर भीतर देखना।
सूफी फकीर औरत हुई राबिया। अनूठी औरत हुई राबिया। जमीन पर बहुत कम वैसी औरतें हुई हैं। बैठी है अपनी झोपड़ी में, सुबह का ध्यान कर रही है। उसके घर एक मुसलमान फकीर ठहरा हुआ था, हसन। वह भी बड़ा प्रसिद्ध फकीर था। तुम्हें फर्क समझ में आ जायेगा, जो फर्क मैं समझा रहा हूं। सुबह हुआ था, सूरज निकला था, पक्षी गीत गाने लगे। सुंदर सुबह थी। आकाश में शुभ्र बदलियां तैरती थीं। ठंडी हवा चलती थी। हसन बाहर आया, उसने देखा यह सौंदर्य। उसने जोर से पुकारा, राबिया, तू भीतर क्या करती? अरे बाहर आ! परमात्मा ने बड़ी सुंदर सुबह को जन्म दिया है। पक्षियों के प्यारे गीत हैं, सूरज का सुंदर जाल है, ठंडी हवा है। तू बाहर आ, भीतर क्या करती है?
और राबिया खिलखिलाकर हंसी। और कहा, हसन, बाहर कब तक रहोगे? तम ही भीतर आ जाओ। क्योंकि बाहर परमात्मा की बनी हुई सुबह को तुम देख रहे, भीतर मैं स्वयं उसे देख रही जिसने सुबह बनाई। सुबह सुंदर है, लेकिन सुबह के मालिक के मुकाबले क्या? सूरज सुंदर है, रोशन है, लेकिन जिसके हाथ के इशारे से रोशनी सूरज में पैदा हुई उसके मुकाबले क्या! और पक्षियों के गीत बड़े प्यारे हैं, लेकिन मैं उस मालिक का गीत सुन रही हूं जिसने सारे गीत रचे; जो सभी पक्षियों के कंठों से गुनगुनाया है। हसन, तुम्हीं भीतर आ जाओ। ___ हसन तो चौंककर रह गया। हसन ने न सोचा था कि बात ऐसा मोड़ ले लेगी। लेकिन राबिया ने ठीक कहा।
ये हसन और राबिया, ये आदमियत के दो प्रतीक हैं। हसन बाहर की तरफ खोज रहा है, राबिया भीतर की तरफ खोज रही है। हसन दृश्य में खोज रहा है। दृश्य भी सुंदर है; नहीं कि दृश्य सुंदर नहीं है। पर दृश्य का सौंदर्य ऐसे ही है जैसे चांद को किसी ने झील में झलकते देखा हो। छाया है झील में तो। प्रतिबिंब है झील में तो। वास्तविक चांद झील में नहीं है।
जिसने चांद को देख लिया। वह झील में देखनेवाले को कहेगा पागल, तू कहां उलझा है दृश्य में! मूल को खोज। यह तो छाया है। यह तो प्रतिबिंब है।
जो हम बाहर देखते हैं वह हमारा ही प्रतिबिंब है। संसार दर्पण से ज्यादा नहीं है। जब तुम्हारा मन रस से भरा होता है तो बाहर भी रस दिखाई पड़ता है। जब तुम गीत से भरे होते हो तो बाहर भी गीत
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5