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क्या तुम पा सकोगे? छाया भी खो जायेगी तुम्हारे डुबकी लगाने से। पानी की सतह हिल जायेगी। वह जो प्रतिबिंब बनता था वह भी खंड-खंड होकर पूरी झील पर बिखर जायेगा। पूरी झील पर चांदी फैल जायेगी, लेकिन तुम पकड़ न पाओगे। तुम पगला जाओगे।
ऐसे ही तो सारा जगत पागल है। दिखाई पड़ता है दूर क्षितिज पर सौंदर्य, दौड़ते हो तुम; जब तक मुट्ठी में आता है, तब तक सब बिखर जाता है। सुंदर से सुंदर स्त्री तुम्हारे मुट्ठी में आते ही कुरूप हो जाती है। सुंदर से सुंदर पुरुष तुम्हारे हाथ में आते ही कुरूप हो जाता है। इसलिए तो अपनी स्त्री किसको सुंदर दिखाई पड़ती है? सदा दूसरे की स्त्री सुंदर दिखाई पड़ती है। इसीलिए तो अपना घर किसको महल मालूम पड़ता है? सदा दूसरे का घर महल मालूम पड़ता है। जो नहीं है मुट्ठी में वही सुंदर लगता है; मुट्ठी में आते ही सब बिखर जाता है।
छायायें हैं इस जगत में। प्रतिबिंब हैं इस जगत में। दूर से बड़े लुभावने। दूर के ढोल बड़े सुहावने। पास आते-आते सब खो जाता है। सत्य की परिभाषा है : जो पास आने पर और सत्य हो जाये। असत्य की परिभाषा है : जो दूर से सत्य मालूम पड़े, पास आने पर खो जाये। महापुरुष की परिभाषा है : जिसके पास आओ तो और बड़ा होने लगे। महापरुष के नाम से जो धोखा देता है उसके पास आओगे, छोटा होने लगेगा। जैसे-जैसे पास आओगे वैसे-वैसे छोटा हो जायेगा। जब बिलकुल पास जाओगे, तुम्हारे ही कद का हो जायेगा। शायद तुमसे भी छोटे कद का साबित हो। दूर से दिखाई पड़ता है बड़ा। ___इसीलिए तो राजनेता किसी को बहुत पास नहीं आने देते। कहते हैं अडोल्फ हिटलर ने किसी से कभी मैत्री नहीं बनाई। एक भी आदमी ऐसा न था जो उसके कंधे पर हाथ रखकर मित्र की तरह व्यवहार कर सके। अडोल्फ हिटलर ने कभी किसी स्त्री को इस तरह से प्रेम नहीं किया कि वह करीब आ जाये। अडोल्फ हिटलर के कमरे में कभी कोई नहीं सोया। कोई स्त्री भी नहीं सोयी। कारण? अडोल्फ हिटलर बरदाश्त नहीं करता था किसी का पास आना। उसका बड़प्पन दूर के ढोल का सुहावनापन था। वह बड़ा था दूर होकर; पास आकर छोटा हो जाता। जानता था। सभी राजनेता जानते हैं।
तुम जब राजपदों की आकांक्षा करते हो तो तुम क्या आकांक्षा कर रहे हो? तुम यही आकांक्षा कर रहे हो, तुम तो छोटे हो, कुर्सियों पर खड़े होकर बड़े हो जाओगे। तुम बचकाने हो। कभी-कभी छोटे बच्चे करते हैं। बाप के पास मूढ़े पर खड़े हो जाते हैं और कहते हैं, देखो पिताजी, तुमसे बड़ा हो गया। राजनीति बस इसी तरह का बचकानापन है। कुर्सी पर बैठकर लोग बड़े हो जाते हैं। राष्ट्रपति के पद पर बैठकर आदमी राष्ट्रपति मालूम होने लगता है, पद से उतरते ही खो जाता है। फिर कोई फिकर नहीं लेता, कोई जयरामजी करने नहीं आता।
___ इसीलिए तो जो आदमी पद पर पहुंच जाता है, पद से हटता नहीं। लाख सरकाओ, लाख उपाय करो, वह टस से मस नहीं होता। वह चाहता है उसी पद पर रहते-रहते मर जाये। अब पद से: उतरे। क्योंकि वह जानता है, वह जो बड़प्पन अनुभव हो रहा है वह झूठ है। वह पद के कारण है; वह कुर्सी से मिला है। अपना नहीं है, आत्मगौरव नहीं है, पदगौरव है।
जिस व्यक्ति को आत्मा का थोड़ा रस आने लगता है वह पदों में उत्सुक न रह जायेगा।
फिर पद का एक फायदा है कि तुम जैसे ही पद पर होते हो, दूसरे पास नहीं आ सकते। यही धन का भी फायदा है। जितनी बड़ी धन की ढेरी पर तुम खड़े होते हो, लोग उतने दूर छूट जाते हैं। कोई
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अष्टावक्र: महागीता भाग-51