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उसने सब जगह परमात्मा को पाया है— फूल-फूल, पत्ती- पत्ती में, झरने में, हर आंख में।
तपसिन कुटिया बैरन बगिया निर्धन खंडहर धनवान महल शौकीन सड़क गमगीन गली टेढ़े-मेढ़े गढ़ गेह सरल रोते दर हंसती दीवारें नीची छत ऊंची मीनारें मरघट की बूढ़ी नीरवता मेलों की क्वांरी चहल-पहल हर देहरी तेरी देहरी है हर खिड़की तेरी खिड़की है मैं किसी भवन को नमन करूं तुझको ही शीश झुकता हूं हर दर्पण तेरा दर्पण है
अपने स्वपद में बैठ गया जो, वह परमात्मा में आ गया। वह घर आ गया। उसे मिल गया जो मिला ही हुआ था । उसने पा लिया, जो उसके भीतर छिपा ही हुआ था । सम्राट हो गया। भिखारीपन गया। गये भिखमंगेपन के दिन ।
उसकी गरिमा महान है, उसका आशय महान है। उसकी कोई सीमा नहीं । उसका चैतन्य अमाप है । उसका जीवन अमृत है।
महाशय को कैसा मोक्ष !
हर देहरी तेरी देहरी है हर खिड़की तेरी खिड़की है मैं किसी भवन को नमन करूं तुझको ही शीश झुकता हूं हर दर्पण तेरा दर्पण है
आज इतना ही ।
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