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इच्छा तो हो ही नहीं सकती। यह तो विरोधाभासी इच्छा हो गई।
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, शांत होना है। मैं उनसे कहता हूं, जब तक कुछ होना है, शांत न हो सकोगे। होने में ही तो अशांति है। जब कुछ होना है तो कैसे शांत होओगे? खिंचाव रहेगा-कुछ होना है। कल कुछ होना है, परसों कुछ होना है, शांति लानी है। अब तुम शांति के नाम पर अशांत होओगे। तुम बड़े अदभुत हो। अभी धन के नाम पर अशांत थे, बाजार के नाम पर अशांत थे, किसी तरह उससे छुटकारा मिला, अब तुम शांति के नाम पर अशांत होओगे। लेकिन दौड़ जारी है। अब शांति पानी है। पहले धन पाना था, पद पाना था, अब शांति पानी है। तुम महत्वाकांक्षा से कभी छूटोगे या नहीं?
शांत होने का अर्थ है : कुछ नहीं पाना। शांत हो गये। जहां पाना गया वहां शांति आयी। इस , दरवाजे से पाना गया, उस दरवाजे से शांति आयी। दोनों साथ-साथ कभी नहीं होते। इस सूत्र पर ध्यान रखना। इस पर खूब ध्यान करना, मनन करना।
न शांतिं लभते मूढ़ो यतः शमितुमिच्छति। मूढ़ व्यक्ति कभी शांत नहीं हो पाते, क्योंकि वे शांति की कामना करते हैं। धीरस्तत्वं विनिश्चित्य सर्वदा शांतमानसः।
और जो ज्ञानी हैं, धीर हैं, वे तत्व को निश्चयपूर्वक जानकर सर्वदा शांत मनवाले हो जाते हैं। इस बात को जान लिया कि मांगने में अशांति है। इस बात को जान लिया, दौड़ने में अशांति है। इस बात को जान लिया, होने में अशांति है। फिर अब क्या बचा करने को? इसके जानने में ही दौड़ गिर गई। इस बोध की प्रगाढ़ता में ही होना भस्मीभूत हो गया। अब तुम जो हो, परम तृप्त, शुद्ध, बुद्ध, पूर्ण, प्रिय। बैठे, चलते, उठते, बैठते, प्रतिक्षण, प्रतिपल तुम जो हो, परम तृप्त।
ऐसा घट सकता है मात्र बोध से। सुनना इस महाघोषणा को। ऐसा घटने के लिए कुछ भी करना जरूरी नहीं है, क्योंकि ऐसा घटा ही हुआ है। ऐसा तुम्हारे भीतर का स्वभाव है।
धन्यो विज्ञानमात्रेण।
धन्यभागी बनो। इसी क्षण चाहो...एक पल भी गंवाना आवश्यक नहीं है। अगर तुम पतंजलि को समझो तो जन्मों-जन्मों तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। अभ्यास बड़ा है। अष्टांगिक योग। फिर . एक-एक अंग के बड़े भेद हैं। यम हैं, नियम हैं, आसन हैं, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, फिर
समाधि। फिर समाधि में भी सविकल्प समाधि, निर्विकल्प समाधि, सबीज समाधि, निर्बीज समाधि, तब कहीं...इस जन्म में तो तुम सोच लो पक्का कि होने वाला नहीं। यम ही न सधेगे; समाधि-वमाधि तो बहुत दूर है। नियम ही न सधेगे। इसीलिए तो तुम्हारे तथाकथित योगी ज्यादा से ज्यादा आसनों में अटके रह जाते हैं। उससे आगे नहीं जाते। उससे आगे जायें कैसे? आसान ही नहीं सध पाते पूरे। आसन ही इतने हैं। आसन ही साधते-साधते जिंदगी बीत जाती है। प्राणायाम साधते-साधते जिंदगी बीत जाती है।
फिर यम-नियम कुछ छोटी-मोटी बातें नहीं हैं। अहिंसा साधो, सत्य साधो, अपरिग्रह साधो, अचौर्य साधो, ब्रह्मचर्य साधो-गये! कभी कुछ होनेवाला नहीं है। यह ब्रह्मचर्य ही ले डूबेगा। यह सत्य ही ले डूबेगा। इससे पार तुम निकल ही न पाओगे। यह फैलाव बड़ा है।
जानो और जागो!
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