________________
राह इत्यादि की बातें तो लोग फुरसत में पूछते हैं; असल में जब निकलना नहीं होता तब पूछते हैं, तब वे कहते हैं : 'कैसे निकलें, पहले राह तो पता हो। मार्गदर्शन तो हो।' फिर मार्गदर्शन भी मिल जाये तो वे पूछते हैं : 'क्या पक्का है कि यह मार्गद्रष्टा सही है ? फिर और भी तो मार्गद्रष्टा हैं, अकेले यही तो नहीं। कौन सही है? पहले यह तो तय हो जाये। बुद्ध सही कि महावीर सही कि कृष्ण कि क्राइस्ट कि मुहम्मद-कौन सही है ? कुरान सही कि वेद सही, कौन सही है? पहले यह तो पक्का हो जाये। निकलेंगे जरूर। निकलना है। लेकिन जब तक मार्ग साफ न हो, सुनिश्चित न हो, तब तक कैसे चलें?' तब तक तुम घर में बैठे हो मजे से, अपना काम-धाम जारी रखे हो।
ये तरकीबें हैं बचाव की। तुम कहते हो ः 'प्रभु को पाने का मार्ग क्या है? प्यास तो है, पर पथ नहीं मिलता।'
नहीं, जरा अपनी प्यास को फिर से टटोलना। जरा खोलकर फिर देखना-प्यास नहीं होगी। प्यास होती तो मार्ग क्यों न मिलता? प्यास होती तो तुम दांव लगा देते। प्यास होती तो तुम मार्ग खोज लेते। क्योंकि मार्ग तो है; तुम जहां खड़े हो वहीं से मार्ग जाता है। लेकिन जब तक प्यास नहीं, तब तक तुम्हारा उस मार्ग से संबंध नहीं हो पाता है।
तो पहली बात मैं कहना चाहूंगा : बजाय मार्ग खोजने के प्यास को गहरा करो। गहराओ। प्यास को जलाओ। ईंधन बनो कि प्यास की लपटें जोर से उठे। जब तक प्यास विक्षिप्त न हो जाये, जब तक ऐसी घड़ी न आ जाये कि तुम सब दांव पर लगाने को राजी हो, तब तक समझना प्यास नहीं है। अगर मैं तुमसे पूछू कि क्या दांव पर लगाने को राजी हो, प्यास है तो...?
सिकंदर भारत से वापस लौटता था, तब वह एक फकीर को मिलने गया। और उस फकीर ने सिकंदर को देखा और वह हंसने लगा। तो सिकंदर ने कहा : 'यह अपमान है मेरा। जानते हो मैं कौन हूं? सिकंदर महान!' वह फकीर और जोर से हंसने लगा। उसने कहा कि 'मुझे तो कोई महानता दिखाई नहीं पड़ती। मैं तो तुम्हें बड़ा दीन-दरिद्र देखता हूं।' सिकंदर ने कहा कि 'या तो तुम पागल हो और या तुम्हारी मौत आ गई। सारी दुनिया को मैंने जीत लिया है।' उस फकीर ने कहा, 'छोड़ यह बकवास! मैं तुझसे पूछता हूं, अगर मरुस्थल में तू भटक जाये और प्यास तुझे जोर की लगी हो और चारों तरफ आग बरसती हो और कहीं हरियाली न दिखाई पड़ती हो, कहीं किसी मरूद्यान का पता न चलता हो-उस समय एक गिलास पानी के लिए तू इस राज्य में से कितना दे सकेगा?'
सिकंदर ने थोड़ा सोचा। उसने कहाः ‘आधा राज्य दे दूंगा।' फकीर ने कहा : 'लेकिन आधे में मैं बेचने को राजी न होऊंगा।' सिकंदर ने फिर सोचा। उसने कहा कि ऐसी हालत अगर होगी तो पूरा राज्य दे दूंगा। तो वह फकीर हंसने लगा। उसने कहाः 'एक गिलास पानी कुल जमा मूल्य है तेरे राज्य का। और ऐसे ही अकड़ा जा रहा है। वक्त पड़ जाये तो एक गिलास पानी में निकल जायेगी सब अकड़। यह राज्य तेरी प्यास भी तो न बुझा सकेगा उस क्षण में। चिल्लाना खूब-महान सिकंदर, महान सिकंदर! कुछ न होगा। मरुस्थल बिलकुल न सुनेगा।'
एक गिलास पानी में राज्य चला जाता हो...! अगर तुमसे कोई कहे कि परमात्मा मिलने को तैयार है, तुम क्या खोने को तैयार हो? तुम क्या दांव पर लगाने को तैयार हो? सिकंदर फिर भी हिम्मतवर था, उसने कहा, आधा राज्य दे दूंगा एक गिलास पानी के लिए। तुम एक गिलास परमात्मा
88
अष्टावक्र: महागीता भाग-5