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था। आज घाव है तो पता चलता है। कोई ऐसा थोड़े ही है कि तुम्हारा घाव देखकर सारी दुनिया तुम्हारे पैर पर गिरी पड़ रही है। घाव का किसी को पता नहीं है। जब तुम एकाग्र होने को बैठ गये और तुमने चेष्टा की, बस घाव पैदा हो गया। अब छोटी-छोटी चीजें बाधा डालने लगेगी।
तमने खयाल किया होगा, ध्यान करने बैठो, कहीं चींटी सरकने लगती है-अभी तक नहीं सरक रही थी, जिंदगी भर नहीं सरकी थी—कहीं खुजलाहट उठती है, कहीं लगता है कि सिर में कोई चींटी चढ़ गई, कहीं पैर सो जाता है। हजार काम एकदम शुरू हो जाते हैं; जैसे सारा संसार तुम्हारे ध्यान के विपरीत है। ध्यान के विपरीत नहीं है, एकाग्रता के विपरीत है। संसार विपरीत है, ऐसा कहना ठीक नहीं; एकाग्रता में तुमने संसार के विपरीत होने की घोषणा कर दी। एकाग्रता की चेष्टा में तुमने कह दिया : मैं दुश्मन हूं। तुमने कह दिया कि अब मैं नहीं चाहता, न चींटियां चलें, न हवाएं चलें, न पक्षी बोलें, न रास्ते पर कोई चले, न बर्तन गिरें-तुमने सारी दुनिया को कह दिया कि अभी मैं ध्यान कर रहा हूं, सब ठहर जाये! तुमने घोषणा कर दी वैपरित्य की। विक्षेप पैदा होगा। हजार-हजार विक्षेप पैदा होंगे। इससे सिर्फ क्रोध पैदा होगा। अशांति पैदा होगी। __ध्यान का वास्तविक अर्थ है : 'अनेकाग्रता! नान कंसेनट्रेशन! शांत होकर, शिथिल होकर बैठ गये। जो होता है, होता है। स्वीकार कर लिया।'
इस स्वीकार की दशा में एक चीज बिखरेगी, वह अहंकार है; और एक चीज सम्हलेगी, वह तुम हो। एक चीज जायेगी, वह अहंकार है; एक चीज आयेगी-तुम जाओगे, परमात्मा आयेगा; या तुम्हारा झूठा रूप जायेगा और तुम्हारा वास्तविक रूप आयेगा।
जब तम्हारा कोई चनाव नहीं तब जीवन में एक सहजता आती है। साधओं को कबीर ने कहा है: साधो सहज समाधि भली।
यह कौन-सा मुकाम है! फलक नहीं, जमीं नहीं कि शब नहीं, सहर नहीं कि गम नहीं, खुशी नहीं कहां यह लेकर आ गई
हवा तेरे दयार की! अगर तुम ऐसे चुप होकर बैठ गये, अनेकाग्र होकर बैठ गये, तो एक दिन पाओगे
यह कौन-सा मुकाम है! फलक नहीं, जमीं नहीं कि शब नहीं, सहर नहीं कि गम नहीं, खुशी नहीं कहां यह लेकर आ गई हवा तेरे दयार की! तुम्हीं थे मेरे रहनुमा तुम्हीं थे मेरे हमसफर
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5