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निकल कैसे सकते हो? ऐसे ही जैसे तुम अपने घर में बैठे हो और एक कल्पना उठी कि कलकत्ते चले जायें। चले गये कल्पना में। मगर जा थोड़े ही रहे हो, वस्तुतः थोड़े ही पहुंच गये हो; सिर्फ कल्पना उठी। हो सकता है, कलकत्ते में कलकत्ते के किसी चौरस्ते पर खड़े-स्वप्न में, कल्पना में। अब अगर मैं तुमसे कहूं कि लौट आओ घर अपने तो क्या तुम मुझसे पूछोगे कि कैसे लौटें? कौन-सी ट्रेन पकड़ें? कौन-सा हवाई जहाज पकड़ें? क्योंकि कलकत्ते के चौरस्ते पर खड़े हैं। लौटना, तो कुछ उपाय तो करना होगा।
नहीं, तुम यह सुनकर कि ‘लौट आओ, लौट आओ घर अपने'-लौट आये, अगर तुमने सुन लिया। तुम यह न पूछोगे, कैसे? क्योंकि गये तुम कभी भी न थे। जाने का सिर्फ आभास है। भ्रांति है संसार। माया है संसार। आभास है कि तुम संसार में हो। तुम हो तो बाहर ही। तुम लाख उपाय करो तो भी संसार में हो नहीं सकते। ___ 'इस संसार में अभ्यास-परायण पुरुष उस आत्मा को नहीं जानते हैं, जो शुद्ध-बुद्ध, प्रिय, पूर्ण प्रपंचरहित और दुखरहित है।'
शुद्धं बुद्धं प्रियं पूर्ण निष्प्रपंचं निरामयम्। आत्मानं तं न जानन्ति तत्राभ्यासपरा जनाः।।
बड़ी अदभुत बात कहते हैं अष्टावक्र। कि जो अभ्यास में पड़ गये हैं, जो अभ्यास में उलझ गये हैं, वे कभी भी उस शुद्ध-बुद्ध आनंदमयी आत्मा को नहीं जान पाते। . बड़ी आश्चर्य की बात। क्योंकि लोग तो पूछते हैं, क्या अभ्यास करें ताकि आत्मज्ञान हो जाये? और अष्टावक्र कहते हैं :
आत्मानं तं न जानन्ति तत्राभ्यासपरा जनाः। जो व्यक्ति अभ्यास में डूब गये हैं वे कभी आत्मा को नहीं जान पाते। समझना।
अभ्यास का अर्थ ही होता है कुछ, जो तुम नहीं हो, होने की चेष्टा। जो तुम हो उसकी होने की चेष्टा तो नहीं करनी होती न! जो तुम हो वह तो तुम हो ही। अभ्यास तो ऊपर से कुछ ओढ़ने का नाम है। अभ्यास का तो अर्थ ही है विकृति। अभ्यास का तो अर्थ ही है झूठ, धोखा, प्रपंच, पाखंड। अभ्यास का तो अर्थ ही यह है कि तुम कुछ आयोजन से, चेष्टा से अपने ऊपर आरोपित कर रहे हो। जो है वह तो है; उसके अभ्यास की कोई जरूरत नहीं।।
गुलाब का फूल अभ्यास तो नहीं करता गुलाब का फूल होने के लिए। न चमेली, न चंपा, न जूही, कोई भी तो अभ्यास नहीं करता। कोयल कोयल है, कौवा कौवा है। कौवा अभ्यास थोड़े ही करता कौवा होने के लिए। कोयल अभ्यास तो नहीं करती कोयल होने के लिए। जो है, जैसा है, उसके लिए तो कोई अभ्यास नहीं करना पड़ता।
लेकिन अगर कोई कौवा पागल हो जाये...होते नहीं कौवे पागल; पागलपन सिर्फ आदमियों में होता है। पागलपन की घटना मनुष्य को छोड़कर कहीं और घटती ही नहीं। अगर कोई कौवा पागल हो जाये और कोयल होने की चेष्टा करने लगे तो उपद्रव, अभ्यास करना होगा। तो फिर शीर्षासन लगाना होगा, योगाभ्यास करना होगा, आसन-व्यायाम साधने होंगे। कौवा कोयल होना चाहता है। और यह सब अभ्यास ऊपर ही ऊपर रहेगा, क्योंकि स्वभाव को कोई अभ्यास कभी बदल नहीं
जानो और जागो!
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