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प्रार्थना में शक्ति है ऐसी कि वह निष्फल नहीं जाती जो अगोचर कर चलाते हैं जगत को उन करों को प्रार्थना नीरव चलाती
कहना भी नहीं पड़ता। बिन कहे भी प्रार्थना पहुंच जाती । बस, हृदय प्रार्थना भरा हो, समर्पित हो, श्रद्धा से आपूर हो, बाढ़ आयी हो प्रेम की तो अनंत आशीषों की वर्षा उपलब्ध होगी। आशीष तो बरस ही रहे हैं; तुम्हारा हृदय खुला होगा और तुम उन्हें पाने में समर्थ हो जाओगे।
इसे याद रखना। यहां कोई बौद्धिक निर्वचन नहीं चल रहा है। यहां तो अनिर्वचनीय की बात हो रही है। उसे पाने के लिए भाव ही एकमात्र पात्रता देता है, विचार नहीं । भाव से समझोगे तो ही समझोगे। विचार से समझा तो चूक सुनिश्चित है।
आज इतना ही ।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5