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प्रभु करवाता, जैसा करवाता बस वैसा; उससे अन्यथा नहीं।
'मंदमति यथार्थत्व को सुनकर मूढ़ता को ही प्राप्त होता है, लेकिन कोई ज्ञानी मढ़वत होकर संकोच या समाधि को प्राप्त होता है।' निर्ध्यातुं चेष्टितुं वापि यच्चित्तं न प्रवर्तते। निर्निमित्तमिदं किंतु निर्ध्यायति विचेष्टते।। तत्वं यथार्थमाकर्ण्य मंदः प्राप्नोति मूढ़ताम्। अथवाऽऽयाति संकोचममूढ़ः कोऽपि मूढ़वत्।।।
वह जो मंदबुद्धि है, यथार्थत्व को सुनकर भी मूढ़ता को ही प्राप्त होता है। और जो ज्ञानी है, वह मूढ़वत होकर संकोच या समाधि को प्राप्त होता है।
- तुम पर निर्भर है। इन सूत्रों में तो बड़े रहस्य की कुंजियां छिपी हैं लेकिन क्या तुम करोगे, तुम पर निर्भर है। तुम इनके गलत अर्थ कर सकते हो, और बड़ी आसानी से। और जितना महान सूत्र हो। उतनी ही गलत अर्थ करने की संभावना बढ़ जाती है। और अष्टावक्र का एक-एक सूत्र अंगारे की तरह है। चाहो तो तुम्हारे जीवन में ज्योति हो जाये। और अगर मंदबुद्धि से काम लिया तो बुरी तरह जलोगे। ____ अब जैसे अष्टावक्र कहते हैं, परमात्मा पर छोड़ दो सब। होने दो, जो हो। अब अगर मंदबुद्धि आदमी हुआ तो वह सोचेगा, चलो अब चादर तानकर सोओ। अब कुछ करने को क्या है? परमात्मा को करने दो। जो करना होगा, करेगा। चादर तानकर सोओ। आलसी व्यक्ति, मंदबुद्धि व्यक्ति इससे आलस्य का सूत्र निकाल लेगा। अकर्ता तो नहीं बनेगा, कर्म छोड़ देगा। वह कहेगा, अभी अपना करने जैसा कुछ है ही नहीं। __ अष्टावक्र कहते हैं, समाधि के भी पार चला जाता है महाशय। मूढ़ जो होगा वह कहेगा, अब ध्यान करने से क्या सार! जब समाधि के पार ही जाना है तो क्या सार! ध्यान के भी पार चला जाता है? तो वह कहेगा, छोड़ो ध्यान। मूढ़ व्यक्ति कहेगा कि जब मुमुक्षा भी व्यर्थ है तो क्यों खोजें सत्य को? क्यों खोजें आत्मा को, क्यों परमात्मा को? आदमी पर निर्भर है। __मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उसे मनोचिकित्सक के पास ले गई और उसने कहा, मेरे पति को हमेशा कुछ न कुछ भूल आने की आदत है। कभी छाता, कभी फाउंटेन पेन, कभी जूते...बात यहां तक हो जाती है कि अगर चश्मा और रूमाल ये ही चीजें भूलते रहें तो भी ठीक है, कभी-कभी मझे तक भल आते हैं। साथ ले जाते हैं क्लब में और खुद नदारद हो जाते हैं, घर पहंच जाते हैं। फिर पीछे कहते हैं, मुझे याद ही न रही। ____ मनोचिकित्सक ने कहा, घबड़ाओ मत, इलाज हो जायेगा। फिर उसने मुल्ला की तरफ गौर से देखा। मुल्ला को जानता है भलीभांति। उसने कहा, लेकिन एक बात खयाल रखना कि इलाज के बाद कहीं प्रवृत्ति उलट न जाये और यह कहीं कुछ का कुछ घर लाना शुरू न कर दे। छाता ले आये, किसी दूसरे के जूते उठा लाये। पत्नी ने थोड़ा सोचा, फिर बोली तो फिर रहने दें; ऐसे ही ठीक है। अगर दूसरे की पत्नी ले आये! अभी तो भूल आता है, वहां तक ठीक है।
मूढ़ व्यक्ति जो भी करेगा उसमें कुछ न कुछ मूढ़ता रहेगी ही। इसलिए बहुत सावधानी
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5